रणथंभर गढ़ राव, उमा सुत थांनै सिंबर।
दोखी देवण दाव, साम्रथ दीजै सूंडळा॥
रिद्धि-सिद्धि वर बुद्धि वरद, ऒढ़र बगसण आथ।
सारा कारज सारणा, नमो चरण गणनाथ॥
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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