रावत सारस्वत इण कविता रो अंग्रेजी अनुवाद ही करियो। 'पातळ-पीथळ' राजस्थानी भोम रै स्वाभिमान, गौरव, अठै री मान-सम्मान अर वीरता री भावना नै सांगोपांग ढंग सूं प्रगटै। इण ओजस्वी रचना में आपणी संस्क्रति री मरजादा अर माठ-मरोड़ री भावना छिप्योड़ी है। आ रचना राजस्थानी री घणी चावी अर अमर रचना है।
अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड़्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड़्यो घणो हूं सह्यो घणो
मेवाड़ी मान बचावण नै
हूं पाछ नहीं राखी रण में
बैरयाँ री खात खिंडावण में,
जद याद करूं हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूं
जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूं
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मै'लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाळ्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
ऐ हाय जका करता पगल्या
फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया
हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड़्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां? है आण मनैं
कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूं दिल्लीस तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो' सपनूं सो सांचो,
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैरयाँ रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो
घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो
राणा री हार बंचावण नै,
म्हे बांध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़?
मर डूब चळू भर पाणी में
बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है?
जद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खसक गई
आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं
राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही, बोल्यो अकबर,
म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याळां रै सागै सोवैलो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो
बादळ री ओटां खोवैलो,
म्हे आज सुणी है चातगड़ो
धरती रो पाणी पीवैलो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो
कूकर री जूणां जीवैलो,
म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में
तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ राणा नै लिख भेज्यो, आ बात कठै तक गिणां सही?
पीथळ रा आखर पढ़तां ही
राणा री आंख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं
नाहर री एक दकाल हुई,
हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं
मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूं घोर उजाड़ां में भटकूं
पण मन में मां री याद रवै,
हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादळ री
जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै?
धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,
आं हाथां में तरवार थकां
कुण रांड कवै है रजपूती?
म्यानां रै बदळै बैरयाँ री
छात्यां में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकैलो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्यां ऐंठ्योड़ी
लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूं अथक लड़ूंला अकबर स्यूं
उजड़्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।
पातळ=प्रताप। पीथळ=कवि पृथ्वीराज राठौड़ जका महाराणा प्रताप रा साथी अर अकबर रै दरबार रा नवरतनां में सूं एक हा। अमरयो=महाराणा प्रताप रो बेटो अमरसिंह। चेतकड़ो=राणा प्रताप रो घोड़ो। बाजोट=जीमण सारू बणी काठ री चौकी। आडावळ=अरावली। पण=प्रण। कूकर=कुत्तो। कड़खो=विजयगान।
सोनै जिसड़ी रेतड़ली पर
जाणै पन्ना जड़िया,
चुरा सुरग स्यूं अठै मेलग्यो
कुण इमरत रा घड़िया?
आं अणमोलां आगै लुकग्या
लाजां मरता हीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
कामधेणु रा थण ही धरती
आं में दूया जाणै,
कलप बिरख रै फळ पर स्यावै
निलजो सुरग धिंगाणै।*
लीलो कापो गिरी गुलाबी
इंद्र धणख सा लीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
कुचर कुचर नै खपरी पीवो
गंगाजळ सो पांणी,
तिस तो कांईं चीज, भूख नै
ईं री घूंट भजाणी,
हरि-रस हूंतो फीको,
ओ रस, जे पी लेती मीरां!
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।
*कलप वृक्ष के फल पर स्वर्ग तो बेवजह ही गर्व करता है, इससे कहीं बेहतर फल तो मतीरा है जो धोरों में पैदा होता है।
आज रो औखांणो
मतीरा तो मौसम रा ई मीठा लागै।
अवसर के अनुकूल ही बात सुहानी लगती है।
भारत मांय विलय रै पछै राजस्थान नै हर जगा निचै माथौ करणौ पड़ रह्यौ है. आज राजस्थांन री नूंवी पीढी लिखणी तौ दुर री बात है, राजस्थानी बोल ईं कोनी सकै है. जकौ कोई बोले है, वै अगर एक जिल्ला सूं दूजै जिल्ला मांय जाय तौ बोलै आ राजस्थानी तौ दूजी है अर हिंदी मांय बात करै. मान्यता नीं मिलण सूं राजस्थांनी रा सबद कोश मांय हिंदी सबदां री भरमार हुवती जाय रह्यी है. आज भारत सरकार सामै भीख मांगण री कोई जरुरत कोनीं. आपां राजस्थांनी भारत सरकार नै देवौ हौ, अर बदळी मांय भारत आपां नै कांई देवै है ??? हरि रा नांव ....! सीमा उपर मरवा वाळा फक्त अर फक्त राजस्थांनी निजर आवै, देश रै आर्थीक विकास मांय राजस्थांनीयां रौ घणौ मोटो जोगदान है. अर इण री बदळी मांय औ दिल्ली दरबार आपां नै आपणै राजस्थांन मांय इज राजस्थांनी बोलण सूं रौकै है. एड़ौ जुलम तौ मुगलां अर अंग्रेजां रै टाईम इ नीं हुयौ. मुगल बादशाह जद राजपुतानै रै कोई राजा नै कागद लिखता हा तौ वै राजस्थांनी भासा रौ प्रयोग करता हा अर जद राजस्थान रौ कोइ राजा मुगलां नै कागद लिखतौ तौ ई भासा राजस्थांनी हुवती. अंगरेजा रै राज मांय ईं रजवाड़ा री राजभासा राजस्थांनी ही. इब सगळी बात रौ सारांश अर लारला 60 बरस भारत रै सागै काढ’र औ नतीजौ निकळै कै भारत मांय राजस्थांन रौ विलय आपणी सबसूं बड़ी भुल ही, आ भारत सरकार आपणा मिनखां नै, आपणां विधायकां नै आपणै राजस्थांन मांय इज आपणी मायड़भासा राजस्थांनी नीं बोलण देवती. इण भारत सरकार रौ बस चालै तौ आ आपणै घरां मांय ईं हिंदी भासा अनिवार्य कर देवै, हाल तौ पोसाळां मांय राजस्थांनी बोलण पर जुर्मानौ लागै है. सौ बात री एक बात, भीख मांगणी तौ करौ बंद. हक मांगौ... अर आपणौ हक नीं दे सकै तौ आजादी मांगौ.... स्वतंत्र राजस्थांन... आपणां राजस्थांनी भाईया नै भारत सरकार री फौजां मांय जावण सूं ना पाड़ौ अर अगर देस सेवा री भावना मन मांय हुवै तौ मायड़भोम राजस्थांन री सेवा करै. जै राजस्थांन! जै राजस्थांनी!!