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मतीरा

Rao GumanSingh Guman singh

मरू मायड़ रा मिसरी मधरा 
मीठा गटक मतीरा।

सोनै जिसड़ी रेतड़ली पर
जाणै पन्ना जड़िया, 
चुरा
 सुरग स्यूं अठै मेलग्यो 
कुण इमरत रा घड़िया?


आं अणमोलां आगै लुकग्या 
लाजां
 मरता हीरा।
 
मरू
 मायड़ रा मिसरी मधरा
 
मीठा गटक मतीरा।


कामधेणु रा थण ही धरती
आं में दूया जाणै,
कलप बिरख रै फळ पर स्यावै
निलजो सुरग धिंगाणै।*

लीलो कापो गिरी गुलाबी
इंद्र  सा लीरा। 
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
 
मीठा गटक मतीरा।


कुचर कुचर नै खपरी पीवो
गंगाजळ सो पांणी,
तिस तो कांईं चीज, भूख नै
ईं री घूंट भजाणी,

हरि-रस हूंतो फीको,
ओ रस, 
जे पी लेती मीरां! 
मरू
 मायड़ रा मिसरी मधरा
 
मीठा
 गटक मतीरा।

*कलप वृक्ष के फल पर स्वर्ग तो बेवजह ही गर्व करता है, इससे कहीं बेहतर फल तो मतीरा है जो धोरों में पैदा होता है।

आज रो औखांणो

मतीरा तो मौसम रा ई मीठा लागै।
अवसर के अनुकूल ही बात सुहानी लगती है।
आपरी सेवा मांय लाया है :
मरुवाणी संघ

2 comments:

  1. marwari digest ने कहा…

    matira kavita ro ras-rang hivde me dungo samagyo.bhot i madhri mithi kavita su aap pariche karayo. sadhuwad ghaneman su.Ratan Jain,Parihara. Editor-MARWARI DIGEST kanabati-9829442520

  2. Pawan Dev Sarswat ने कहा…

    MATIRA Kavita ghani aachhi lagi. lekin aajkal ra yuva in bata ne kai jane. Vastav me amrit ras h is kavita me or matire me.

    pawandev