एक मिनख रै तोटौ आयग्यौ। परभात रौ आथण अर आथण रौ परभात पकड़णौ दौरौ व्हैगा। आपरी ऊपर में वौ चिलम ई मांगनै नीं पीवी तौ किणी सूं रिपिया कीक मांगै। पण दिन धकावणा मुळगा ई दूभर व्हैगा तौ काठौ कायो हायनै वो एक बांणिया री पेढ़ी चढ़यौ। बांणियौ उणनै ओळखतौ हौ। आव-आदर रै सागै बतळायौ-आवौ सिरदारा, आज अठीनै कीकरण किरपा करी ? मिनख सूं नीं तौबोलीजियौ अर नीं उण सूं बांणिया रै साम्हीं ई भाळीजियौ। वौ तौ नीची धूण करनै बौलो-बौली पैढ़ी माथै बैठग्यौ। सेठ मा‘ टौ बड़ौ समझणौ हौ। तुरण उणरै मन री बात लखग्यौ बौल्यौ-अर पौ आपरै घर री पेढी है। म्हारां सूं आप संकोच राखौ, बड़ी अचंभा री बात है। मिनख सूं ई कांम पड़िया करै। फरमावौ किता रिपिया री जरूरत है ? मिनख गळगळा कंठ सू जवाब दियौ, सेठां, रिपिया तौ म्हारे हजार चाहीजै। पण करो चाहीजण सूं ई कांइ व्है, म्हारै कनै गैणौ-गांठौ की कोनी। अर जीम म्है मारियं इ किणी रै नांव नी मंडावू। बांणियो बीच में बौल्यौ-कुण बुरीगार आप सूं गैणौ-गांठौ मांगियो। आपरी मूंछ रौ फगत एक बाळ म्हनै तौड़नै दे दिरावौ, मिनख आपरा धूजता हाथ सूं मूंछ रौ एक बाळ पकड़ियौ। तणकरौ देयनै तो बाळ तौ तोड लियौ पण बांणिया नै बाळ झिलावतां उणरी आंख्या जळजळी रहेगी। मिनख रै पाखती ई एक राईको बैठौ हो। वौ ई सेठा कनैरिपिया लेवण सारू आयो हौ। मूंछया रा बाळ साटै रिपिया मिळला देख्या तौ वौ तुरंत आपरी मूंछ रा लट्टी बांणिया साम्हीं करनै कहयौ-लौ सेठां, अंक री ठौड़ औ पचास बाळ। म्हनै ई आरै साटै पांच सौ रिपिया दे दौ। बाणियौ खिखरा करतौ बोल्यौ-बावळा, एड़ी जट तौ टकै घड़ी बिके। औ तौ मूंछ-मूंछ रौ फरक है। अळगी बारै फंेक, क्यूं हाट में फूस बिखरे। इणरी मंूछ रौ एक बाल हीं म्हारै करजा चुकावण सारू घणै हो, ओ उतरी रात सावैला नीं जठा तक वौ पेढ़ी माथै सूं बाल नीं लै जावै। राईका नै सगली बात समझ आयगी, वौ बोलो-बौलो आपरौ कंदौरो काढ़ने पांच सौ रिपिया लिया। मिनख नै मूंछ रे एक बाल रे सागै हजार रूपिया मिलगिया।
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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