आजकल घणकरा घरां में लुगाया रो राज है अ‘र लुगायां रौ ईज बोलबालो हैं। मूछाला मरद बापड़ा घर में भड़ती बगत मूछा नीची कर‘र ड्योढ़ी में बढ़े। म्हारा ई कई मींत मिळै तो आपरी घर गाथ सुणावे। उणमें कीं बातां सुख री व्है तो केई दुख री भी व्हैं। मलै मिनळ आळा लोग अर मींत आपरौ जिकौ तजुरबो मनै सुणावै, उणरे मुजब वांरी घरवाली या जोड़ायत भांत-भांत रा सुभाव अ‘र आदतां रै कारण न्यारी ओळखाण राखे नै आपरै घरधणी नै उणी ढंग सू परोटे। मोटै तौर सूं बै इण मुजब देखण में आवै। केई भायलां री घरवालीं पतिदेव सूं बेसी वांरी जेब सू हेत राखे अ‘र तनखा लावतां ईपूरी तनखा आपरे कबजे कर ले अ‘र घरधणी बिचारौ गुटका-बीड़ी सारू ई पईसा ने तरसै। वांरी लुगायां नित नवा कपड़ा पेहरै अ‘र वै भाई लोग वार-तिवांर नै ई नवा कपड़ा सारू उडीकता रेय ज्यावै। पति परमेसर रै हाथ में पईसा देखतां ई ए लुगायां पतंग री डोर ज्यूं खेच‘र पईसा आपरे हवाले करले। केई देविया तो दोयां च्यारां छानै-ओले पति री जेबां टटोळती रेवै अ‘र चोरियौड़े धन सूं बजार में चाट-पकौड़ी खावै। कदेई-कदास गुटका सुपारी रो ई भाग लगावै। ऐड़ी लुगायां कसाई री श्रेणी में गिणीजै। दूजै कांनी केईघर लिछमी ऐड़ी भी व्है, जिकी आपरे पतिदेव नै खोळे रै टाबर ज्यूं राो अ‘र उणरै खाणै-पीणै सूं लेय‘र कपड़ा-लतां तांई पूरौ ध्यान राखै। घरधणी रे दियोडे़ माल-असबाब सूं लेयर उणरै कागद-पानां तांई सगळी चीजां संभाल र राखै, उणरी आतमा ने कदैई कष्ट नीं पोंचावै अ‘र सदा खुश राखण रौ जतन करै। ऐड़ी लुगायां मां रूपी पत्नी कहीजै। पण केई घरवालियां ऐड़ी भी हुवै, जका काम-काज सूं तो किनारौ राखैं पण खावण-खंड़ी घणी व्है। इयां लिछमीयां री खुराक तो अणूती व्है, पण काम रै नावां माथै फळी ई नीं फोडे। रोट तोड़णा अ‘र नींद काढणी इयां रे खास सुभाव में गिणीजै। काम पड्यां घरधणी नै गाल काढ़णै सूं लेय‘र इज्जत उतारण तांई कोई औसर नीं चूकै। आपरे पति नै रमतियो समझण आली ए लुगायां कर्कसा लुगायां कहीजै। इणरै टाळ केई लुगाया पतिदेव रै हुकम बिना पावंड़ो ई नीं भरै, अ‘र पति री इंदा मुजब घर चलावै अ‘र पति ने प्रिय भोजन रो भोग लगावै, मान-मनवार सागै जिमावै, पछै खुद खावै, वा पत्नी आग्याकारी घर लिछमी कहीजै। ऐड़ी लुगायां पति रै एक इशारै माथै दोड़ती निजर आवै। केई लुगायां इसी ई व्है, जिकी आपरे पति नै देखतां पाण हरख करै, हंसी-ठिठोळी करै अ‘र जे घणै अरसे सूं पतिदेव परदेसां सू पधार्या व्है तो उणरौ कोड़ करै, उच्छब करै अ‘र आरती उतारै। भांत-भांत रा जीमण जिमावै नै खुद ई उणरै सागै भोजन करै, वा घरवाली मित्र पत्नी कैवावै। केईक लुगायां ऐड़ी भी व्है, जिकी पति रै रीस कर्या सूं रीसां नीं बळै, नीं पाछौ तूटतौ जबाब देवै। सदैव मन में घरधणी रो ड़र खटकतौ रेवै, अ‘र भूले-भटके पतिदेव हाथ उठायदै तो ई चुप-चाप सहन करलै, पण मन में पति रै वास्तै कदेई दुरभावना नीं राखै, ऐड़ी लुगाया दास पत्नियां कहीजै। इण भांती लुगाया रे सुभाव रै ढ़ालै वांरी विगत अठै दीवी है। आपई आप रै मन में तौल‘र निरणै करो कै आपरी घरवाली उपर लिख्यौड़ी लिछमियां री कुणसी केटेगरी मंे आवै अ‘र आप किता पाणी में हौ। पति देवां रा कांई-कांई रूप व्है अ‘र कांई कुलक्खण पाळै, इण विगत रै सागै फेर कदेई हाजर होवूंला।
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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