एक गांव में एक सेठ पैलवान हो। गांव में कुश्ती करण आवण वाला सगळा पहलवानों नै वौ पछ़ाड़ियौ हो। पण अबै सेठ री अवस्था ढलन लागी हीं अर सागै ताकत भी कम व्हैगी हीं। उणसूं जलण वाला मिनखा मैं आ बात ठाह पड़ी तौ वै मौकौ साजण री सोची। वे दूजा गांव सूं एक पैलवान ने न्यौता दियौ। एक दिन गांव में एक नुंवौ पैलवान आयौ अर सेठ नै कुश्ती करण सारू ललकारियौ। सेठ सोचियौ आज तक री इज्जत धूड़ में पड़ जावैला। सरीर में ताकत नीं ही, वो घणी चिंता में पड़ग्यौ। इज्जत रै खातर वो उण पैलवान री चुनौती स्वीकार ली। सेठ सूं जलण वाला मिनख घणा खुश व्हिया। गांव में चरचा चालगी कै अबै सेठ क्हैं तिरी ताकत हैं, ठा पड़ जावैला। कुश्ती में जीतण वाना नै 500 रिपिया रौ इनाम मिळणौ हौ। थोड़ा दिन पछ़ै, अखाड़ा में कुश्ती रौ आयोजन व्हियौ। कुश्ती देखण पूरौ गांव जुटियौ। टैम माथै कुश्ती शुरू व्हिई। दोनां पैलवान आपस में गुथ गया। सेठ जद देखियौ कै जीतण री आशा नीं है तौ वौ दूजा पैलवान रै कानां में धीरे सूं कह्यौं, थूं जीत जावैला तौ थ्हनै पांच सौ रिपिया हीं मिलेळा, पण हार जावै तौ क्है थ्हनैं एक हजार रिपिया इनाम में दूंला। पैलवान बातां में लाग गियौ। वौ मन में सोचियौं मैं तो नौसिखियों हूं, कठी हारूला, कठी जीत जाऊंळा। क्हैं जाण बूझ नै हार भी जावूं जौ क्हनैं कई फरक पड़ै, हजार रिपिया घणा काम आवैला। यूं सोच नै वौ सेठ नै जिताय दियौ। सेठ आपरी मूंछां माथै ताव देवण लागौ तौ ईष्र्या करण वालां रा मूंडा उतर गिया। सेठ पांच सौ रिपिया लेयर आपरै घरै आयौ। थोड़ी देर पछै पैलवान सेठ रै पाग पूग ग्यौ। अर उणरी जुबान रै मुजब एक हजार रिपिया मांगिया। सेठ व्यंग्य सूं हंसण लागौ अर पैलवान सूं कह्यौ, बावला, काहौ रा रिपिया लैवणै आयौ है ? वौ तो बखल रौ दांव हौ, जो चाल गियौ। पैलवान उतरियौ मूंड़ौ लैयर घरे गियौ, वौ घणौं पछतायौ के पांच सौ रिपिया भी आपरी मूरखता में गमा दिया, सेठ री गांव में इज्जत घणी बढ़गी, लोग उणसूं जितरा ड़रता उणती ज्यादा डरण लागा।
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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