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शिक्षा का माध्यम बोली न हो

Rao GumanSingh Guman singh

जोधपुर में मारवाड़ी बोली जाती है, कोटा में हाडोती, जयपुर में ढूंढाड़ी, पूर्वी राजस्थान में ब्रज, मेवात में मेवाती, मेवाड़ में मेवाड़ी, शेखावाटी में शेखावाटी, ऎसी स्थिति में राजस्थानी भाष्ाा किसे माना जाएगा और शिक्षा का माध्यम किसे बनाया जाएगा? कुछ ऎसे ही सवाल गुरूवार को आर्य समाज और नागरिक परिष्ाद् की ओर से वैदिक कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित एक चर्चा मे उठाए गए।

इसमें राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पानाचंद जैन ने कहा, राजस्थानी भाष्ाा को शिक्षा का माध्यम बनाना असंवैधानिक है, क्योंकि संविधान की 8वीं सूची में केवल अहिंदी भाष्ााओं को ही रखा जा सकता है न कि बोलियों या हिंदी भाष्ाा को जबकि राजस्थान में या तो हिंदी है या विभिन्न बोलियां।

राजस्थान की एकता के लिए और विभिन्न बोलियां बोलने वाले जन समुदाय को एक सूत्र में बांधने के लिए सर्व सम्मति से हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया था। राजस्थानी को शिक्षा का माध्यम बनाने का विवाद खड़ा कर राजस्थान को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

पूर्व आईएएस अघिकारी सत्यनारायण सिंह का कहना था कि बोलियों के माध्यम से विश्व में कहीं भी कोई शिक्षा नहीं दी जाती है। केंद्रीय सेवाओं, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, बैंक आदि संस्थानों में हिंदी और अंग्रेजी जानने वाले लोगों को नौकरी दी जाती है। क्या बोलियों से प्राप्त ज्ञान के आधार पर राजस्थान की नई पीढ़ी को रोजगार मिल सकेगा? राजस्थान में हमेशा से शिक्षा और राजकाज की भाष्ाा हिंदी ही रही है, फिर आज इसे बदलने की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है।


आर्य प्रतिनिघि सभा के कार्यकारी प्रधान सत्यव्रत सामवेदी का मानना था कि प्रदेश में सभी प्रांत के लोग रहते हैं और सभी राष्ट्रभाष्ाा हिंदी तो समझते हैं लेकिन राजस्थान की बोलियों को नहीं। ऎसे में शिक्षा का माध्यम हिंदी से अलग किसी और भाष्ाा या बोली को कैसे बनाया जा सकता है।

6 comments:

  1. शिक्षामित्र ने कहा…

    बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा। ध्यान नहीं है कि इस विषय पर पहले कोई आलेख कहीं पढा हो।

  2. vinod saraswat ने कहा…

    आज रे राजस्थान पत्रिका में छपियो ओ समाचार वा लोगा री करतूत है जिका उम्र भर इण धरती रो आत्तो बिगाडियो पण अबे हरामखोर लूनहरामी पर उतर आया है. भास्कर में एक सू एक इधका ठावा समाचार, चर्चा गोष्ठी, लेख आद ने देख ने वारो घणो जीव दोरो व्हे रियो है. वारे की बाकी में चाकी कोनी. वा सू की नी व्हे सक्यो तो च्यार लोग भेला व्हे ने आपरी भड़ास निकाल ने एक प्रेस नोट तयार कर ने पत्रिका में छपा दियो. इण सू की नी व्हे सके. ऐ आपरी लाख चेष्टा करलो राजस्थानी रो ओ रथ अबे रुकन वालो नी है. इण हरामखोरा ने इत्तो ही केवनो चावू. जाट कह ऐ! जाटणी इण गांव में रेणौ, ऊंट -बिलाई लेयग्या हाजी-हांजी कैणौ। राजस्थान में रेवणौ हुसी, उण नैं खमा-घणी केवणौ पड़सी। ज्यांरी खावो बाजरी, वांरी बजावौ हाजरी। जय राजस्थानी।

  3. बेनामी ने कहा…

    राजस्थान मांय कुछ लोग एड़ौ मानै कै बहुराष्ट्रीय कंपनीयो मे काम करने के लिये हिंदी और अंगरेजी की पढाई देखी जाती है.


    म्हें केवूं कै हिंदी नै कोई कोनी पुछतौ अर आखी दुनिया मांय अंगरेजी चालै. अगर एड़ा तर्क माथै चालां तौ राजस्थान मांय भणतर (education) अंगरेजी मांय करिजणौ चईजै, जिणसूं राजस्थानी आखी दुनिया में कठै ईं जायर काम कर सकै. सगळा जाणै भारत मांय ईं हिंदी हर राज्य में नीं चालती पण अंगरेजी हर राज्य में चालै.

    हां, राजस्थानी रै वास्तै म्हें म्हारी जागा अड़ीग हूं ना तौ अंगरेजी अर ना ईं हिंदी इणरी जागा ले सकै. पण ऎड़ा तर्क देवणीया नै तौ औ जवाब देवणौ पड़ैला नीं. आप कांई सोचो ?

    आपरै टिप (comments) री उड़ीक मांय
    Hanwantsingh Rajpurohit

  4. Guman singh ने कहा…

    आ खबर है, राजस्थान पत्रिका री. आर्य समाज वाळा हमेश प्रादेशिक भासावां रा बैरी रह्‌या है. आर्य समाज रौ संस्थापक दयानंद सरस्वती महाराजा उमेदसिंघजी (मारवाड़) नै घणौ फोर्श कर्‌यौ हिंदी नै मारवाड़ री राजभासा बणावण वास्तै.

    औ हलकट आदमी आखीर मारवाड़ में किणी रौ शिकार बण्यौ. गांधी, पटेल, दयानंद खुद रै गुजरात में तौ गुजराती चलावै अर राजस्थानीयां माथै प्रेसर करै कै वै हिंदी बोलै अर लिखै.

    आर्य समाज नै भासा रौ ग्यान तौ है कोनीं अर राजस्थानी भासा नै बोलीयां रै हिसाब सूं तोड़ण री कोशिश करिजै है. अगर हिंदी राजस्थान री एकता रौ प्रतीक है तौ उप्र, बिहार, मप्र अर दुजा राज्यां साथै ईं एड़ी इज होवणी चईजै.

    आर्य समाज अर दूजा राजस्थानी रौ विरोध करणीया खुद इण बात माथै एक कोनीं अर कदै तौ केवै राजस्थानी हिंदी री बोली है अर कदै हर एक बोली नै अलग भासा बतावै. पैली तौ वै खुद आपसरी मांय नक्की करै कै इणनै बोली मानै या अलग अलग भासावां.

    अठीनै सिंधी समाज ईं राजस्थानीयां रा कर्‌यौड़ा ऎसाण भुल’र राजस्थानी रौ विरोध करण लागा है. जद पाकिस्तान मांय लात पड़ी ही अर भारत कांनी मुड़ौ कर्‌यौ उण टाईम महाराजा हनवंतसिंघजी इण लोगां नै बधा’र लिया हा. इण लोगौ नै मारवाड़ रियासत मांय जमी जागा दिधी अर आज ऐ लोग इज आपणी भासा अर संस्क्रती र बैरी क्यूं बण्या है. अर हां, खुद नै खुद री भासा घणी ईं व्हाली लागै अर हर काम काज मांय सिंधी वापरिजै. पाकिस्तान रै सिंध मांय ईं मारवाड़ी भासा नै पुरौ पुरौ मांन मिळ्यौड़ौ है, सिंधी अर राजस्थानी दोनूं नै पाकिस्तान मांय सांवैधानीक मानता कोनी पण सिंध रै लोगां रै मन मांय दोन्यूं भासावां रै वास्तै एक सरखौ मांन है, तौ आपणै राजस्थान रा सिंधी क्यूं आड़ा आवै.

    सिंधी समाज अर आर्य समाज सावचेत, अगर आड़ा आवण री कोशिश करता रह्‌या अर थां लोग नाट्क बंद नीं कर्‌या तौ राजस्थान मांय जड़ मुळ सूं समाप्त व्हे जावौला... आ धमकी कोनीं, चेतवणी है...

    जाट कह ऐ! जाटणी इण गांव में रेणौ, ऊंट -बिलाई लेयग्या हाजी-हांजी कैणौ।

    राजस्थान में रेवणौ हुसी, उण नैं खमा-घणी केवणौ पड़सी।

    ज्यांरी खावो बाजरी, वांरी बजावौ हाजरी। जय राजस्थानी।

    जै राजस्थान! जै राजस्थानी!!

  5. amritwani.com ने कहा…

    chalo achi bat he sa




    shekhar kumawat

    kavyawani.blogspot.com/

  6. vinod saraswat ने कहा…

    आज रे राजस्थान पत्रिका में छपियो ओ समाचार वा लोगा री करतूत है जिका उम्र भर इण धरती रो आत्तो बिगाडियो पण अबे हरामखोर लूनहरामी पर उतर आया है. भास्कर में एक सू एक इधका ठावा समाचार, चर्चा गोष्ठी, लेख आद ने देख ने वारो घणो जीव दोरो व्हे रियो है. वारे की बाकी में चाकी कोनी. वा सू की नी व्हे सक्यो तो च्यार लोग भेला व्हे ने आपरी भड़ास निकाल ने एक प्रेस नोट तयार कर ने पत्रिका में छपा दियो. इण सू की नी व्हे सके. ऐ आपरी लाख चेष्टा करलो राजस्थानी रो ओ रथ अबे रुकन वालो नी है. इण हरामखोरा ने इत्तो ही केवनो चावू. जाट कह ऐ! जाटणी इण गांव में रेणौ, ऊंट -बिलाई लेयग्या हाजी-हांजी कैणौ। राजस्थान में रेवणौ हुसी, उण नैं खमा-घणी केवणौ पड़सी।
    ज्यांरी खावो बाजरी, वांरी बजावौ हाजरी। जय राजस्थानी।