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धन म्हारा देश बीकाणा,

Rao GumanSingh Guman singh

खेताँ में होज्या म्हारे मोठ,बाजरो नहीं परदेशा जाणा रे 
घरे में तो म्हारे गायां भेंस्यां दूजे, और दूध दही का खाणा रे
घर की लुगायां म्हारे काम कर लेवे बे चुग ल्यावे लकड़ी छाणा रे 
चोक्यां पर बेठ्या म्हे मौजा मारां, भरा चिलमडी में पाना रे
माँ बाप की नीयत बिगडज्या, जद आवे पुलिस और थाना रे
पिसा लेकर बेटी परनावे जद बीन परणीजे काणा रे

1 comments:

  1. Unknown ने कहा…

    भोत ही चोखी बातड़ी की हो सा
    धन्यवाद