एक करसी हो। लगो-लग दो तीन बरसां सू काळ रे चालतां खेती में कीं आवक नहीं हो रेयी ही। घर रो चूलों चलावणों दौरौ हौग्यो हो। वौ उनाळू साख सारू चैथा वांटा में एक जमीनदार सूं बात करी अर, उण रो बेरौ बंटाई रे हिसाब सूं तै कर लियौ। वे बेरौ सितर हाथ ऊंडौ झेलवौ बेरौ हो। चार जोड़िया बिना वो ताबै आवणौ ही दोरो हौ। इण खातर करसो अेक सेठ कनै गयौ अर उणसूं सूद माथै करजो लियौ। उण रै मन में ही कै चैखी साख होवता हीं माथै सगळी फारगती कर दूं ला। पैले फटकारै ई पूरौ खातौ वाळण सारू करसौ सगळा जाव में वो मिरचा बोय दी। कैणा में तौ जमींदार रौ बांटौ चैथौ हो, पण वो बैजा तंग करण लागग्यौ। रोजीना री मांगा-तांगी में के आज फलांणजी रै मिरचा भेजणी, आज ढींकड़जी रै अर आज पूछडंजी रै, यूं कर नै सगळौ बांटौ आधा सूं ईं करणौ पड़ियौ। दूबळा नै सौ दोखा व्ळिया करै। जोग री बात, पछै मिरचा में रोग व्हैगौ, की दावा री झपट लागगी, कीं ठाकर री गिरै अर कीं भाव धापनै मोळौ रेगौ। करसौ तौ लेणा में साव कळग्यौ। भूंडै ढाळै पड़ग्यौ। कमायो कीं नीं, सूद ऊपर सूं। रिपिया में जोखौ राखणियौ, अैड़ौ भोळौ सेठ ई कोनीं हौ। करसा री च्यारूं जोड़िया, थोड़ौ घणौं गैणौ गांठौ, वित-मवेसी, कपड़ा-लत्ता, बरतन-बासण सूंकाम नीं सरियौ तौ सेठ करसा रै डील रा गाभा ई उतार दिया। पौतियौं अंगरखी अर पगरखियां धुराधुर खुलायली। फगत गोड़ा सूं अेक वेंत ऊंची फोटोड़ी झीर-झीर व्हियोड़ी धोती राखी। पण लैणौं नीं उतरियौ ? करसौ घणौ ई रोयौ, कळपियौ पण सेठजी अेक लाल-छदांम छोड़ण नै ई त्यार नीं हा। करसो घणी बेईज्जती अर कूटण रा डर सूं रात रा आप रो झंूपौं छौड़नै छानै छिपतौं मंदिर में जाय नै छिपग्यौ। जांणियौ झांझरकै पौर रात थकां उठा सूं ठेको देय ने निकळ जावूंला। जीव रौ उकारळियौड़ी वौ पारसनाथ जी री पूतळी रै लारै लुकग्यौ। अंधारा में पूतळी साव नागी-तड़ंग। पूतळी रा माथा माथै हाथ फेरनै वो होळै सूं ड़रतै ड़रतै कह्यौं, भाया, थूं दो बेरा करिया दीसै। म्हारै अेक फोटोड़ी धोतड़ी तौ है, थारै तो वा ई कोनी। भगवान भी मन रे मांय हंस नै रेय ग्या, करता भी काई, करसे रा भाग चितरगुप्त भी ऐड़ा हीं लिख्या हा।
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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