ऐक सेठ रै कन्ने एक नौकर रह्या करतौ। वो राजीना एक ही बात सोच्या करतों, म्है तड़के उठ जाऊं, इत्तो-इत्तों काम करूं, देर रात तक जाय र, बिस्तर नसीब व्हिया करै। इण काम रा म्हनै दस रिपिया माहवार मिळै। सेठजी रो मुनीम खाली चार घंटा आवै, गादी माथै मंसद रै सहारै बैठ जावै। कीं करतो कोनी दिखै, पण सेठ इण नै तीन सौ रिपिया माहवार मिळै है। एक दिन नौकर आप रै मन री बात सेठ ने कैय ही दी। सेठ नौकर री बात सुण र, म नही मन खूब हस्यो। पछै उण नै कह्यौ, थनै थ्हारी बात रौ जवाब काळै देवूंला। दूजै दिन सेठ दिनूंगै ही नौकर से कह्यौ, दरिया माथै जाय र देख नै आ, आज कांई आयौ हैं ? नौकर दौड़ नै गयौ और पाछौ आय नै बतायौ आज एक जहाज आयौ है। सेठ उण नै पाछौ भेज्यौं, जा देख नै आज, जहाज रै माय कांई आयौ हैं ? नौकर फेरूं भाग्यो-भाग्यों दरिया माथै गयो अर जहाज वाळा नै पूछ पाछ नै खबर लायो कै जहाज रै मांय चावल भरियोड़ा है। सेठ नौकर ने पूछ्यौं, चावल किण किसम रा हैं, किण भाव रा हैं ? नौकर इण बात री तपास करण पाछौ दरिया माथै जावण वाळो ही कै इतरे में मुनीमजी आय गिया। सेठ ने मुनीमजी ने कह्यौं, मुनीमजी थोड़ो दरिया माथै कांई आयौ हैं ? मुनीमजी दरिया माथै गिया अर, चावल री सगळी बोरिया खरीद लीवी। बाजार थोड़ौ परवान माथै हौं, मुनीमजी जी वे चावला बोरियां आठ आनै रै मुनाफै मंे हाथौ हाथ बेच दीवी अर मुनाफे रा पंाच हजार रिपिया लाय र सेठजी रै आगे धर दिया। वह नौकर सगळौ नजारौ देख्यो, मुनीम री कला देख र नौकर हक्को बक्कों रेय ग्यौ। सेठ उण नै केवण लाग्यौ, बावळा, थूं एक काम ने चार चक्कर रै मांय भी पूरो कोनी कर्यौं, अर मुनीमजी एक सवाल रो जवाब इण तरै दियो कै सुबह दरिया माथै गिया अर दौपारा तक पाछै आय नै रिपिया पांच हजार गादी माथै रख दिया। अब बता, थनै दस रिपिया और मुनीमजी ने तीन सौ रिपिया ठिक ही देवूं या नीं ? नौकर बिचारौ समझ ग्यौ, कै बैठण रा नीं, मुनीमजी नै अकल रा तीन सौ रिपिया माहवर मिल्या करै। सेठ रौ सीख देवण रो तरीकों भी उण नै समझ में आय ग्यौ। वो जाण ग्यांे, आप-आप री अकल रा ही दाम मिल्या करै।
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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