घणी पूरानी बात हैं। रामदीन नाम रो बिरामण हौ। वौ चंदर नाम रा गांव मैं रेवतौ हौ। एकर उण गांव में आंधी-तूफान आयौ। तूफान इतरौ भंयकर हो कै घरां री छतां उड़गी। थेड़ी देर पछै बरसात शुरू व्हिई। घर गिरण रा ड़र में एक मिनख आपरा टाबरां नै लेयर दूजी जगा निकल गियौ, ताकि आफत सूं उणरौ कई नीं बिगड़े। उणरै घर में एक मिनकी हीं, उतावल में वो उणनै खोलणौ भूल गियौं। आंधी-तूफान में वौ हक्को-बक्को वठा सूं निकलगियौं। इण हड़बड़ाहट में मिनकी वठेही बांधियोड़ी ही रेहगी। ज्यू-ज्यूं तूफान आयो वा घणा पग पटकिया, पण मिनकी नीं खुली। जठै मिनकी बांधियोड़ी ही, उणती थोड़ी अलगी दूर हवा सूं उड़नै रूई रौ टुकड़ौं आयनै गिर गियौ, अठै पाणी रा टपां पड़ण सूं वौ वठै ही आयनै रूक गियौ। बिल्ली रो ध्यान वठै गियौ तौ वौ सोचियौं कै औ माखन रौ टुकड़ौ हैं। वा माखन पावण सारू घणी उछल कूद मचाई, पण सगळी बेकार गी। घणी मेहनत रा पछै भी माखण उणरी पहुंच सू बारै ही रियौ। वा भूख रै मारै कूदती गी, वा बंधन सूं मुक्त होवण सारू रास्ता खोजण लागी पण उणनै कोई रास्तौं नीं सूझियौं। लारै जातौ वा थक हार गी। पांच सात दिन पछै जद आंधी तूफान रौ जोर कम पड़ियौ। जणै घर रा सगळा मिनख घरै आया। उणनै घणों अफसोस व्हियौ कै वौ उतावल में मिनकी खोलणौं भूल गियौ। उणणै आपरै करमा माथै घणौ दुख व्हियौ। खैर जौ व्हैगी सो व्हैगियौ। वौ लारली बात बिसार नै उणी टैम मिनकी नै खौली अर उणनै घणौ लाड़ करियौ। घणी चीजां खावण सारू रखी। लाड़ करतौ वौ उणनै गौद में भी उठा ली, पण मिनकी रौ जीव तौ माखन में बसियोड़ौ हौ। इण सारू वा उतावली व्हैनै माखन रै पास पूगी, वा सौचियौ आत सात दिनां रै पछै उणरी मन री इच्छा पूरी व्है जावैला। जद उणनै साची बात ठाह पड़ी तौ वा घणी दुखी व्हिई। रूई तौ टुकड़ौ पायनै उणरै मन में निराशा घर कर गई, यूं करता उणरौ जीवण उड़ गियौ। मालिक नै जद इण बात रौ ठाह पड़ियौ जणै वौ घणों दुखी व्हियौ। मिनकी सात दिनां तक माखन रा लौभ में जीवती रैहगी, पण रूई देखणै उण्रौ जीवण थौड़ा टैम में हीं निकल गियौ।
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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