भारत री सरकार राजस्थानी भासा नैं भारत रै संविधान री आठवीं अनुसूचि में नीं भेळ नै भूंड री भागीदार बणण रो कुजोग भोग रैयी है तो दूजी कांनी राजस्थान री अशोक गहलोत सरकार भी इण कांनी सूं मूंडो मोड़ लियो लागै अर राजस्थानी भासा, साहित्य, अर संस्कृति नै तळै बेठावण में कोई पाछ नीं राख रैयी है। जिण रो सैसूं लूंठो सबूत ओ है कै राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी रो सगळो काम ठप पड़यो है नै अठै सूं छपण वाळी मासिक पत्रिका जागती जोत लारलै डेड बरस सूं छपण री बाट जो रैयी है।
अठै नीं तो अध्यक्ष है अर नीं ही कार्य समिति अर सामान्य सभा। इण चक्कर में नीं तो नूंवी किताबां ही छप रैयी है नै नीं ही बरसाऊ दिरीजण वाळा पुरस्कार दिरीज रैया है। इण रो सालीणौ बजट इयां इज लाली लेखे लाग रैयो है जिण री नीं तो कदैई ऑडिट व्है अर नीं ही कोई पूछताछ। इण अकादमी में अबार आंधा पीसै नैं कुता खावै जिसी हालत हुयोड़ी है इण रो रांधण कुण खावै नैं कठै जावै? कोई बतावणियो कोनी मिले। अठै पांच कर्मचारी लागौड़ा है जिणा रै कनै कोई काम नी होवण सूं वै भी आप री हाजरी बजा नैं आप री तिणखा पक्की कर ले। कुण कद आवे, नैं कद जावे? किणी नैं किणी रो ठा कोनी।
राजस्थानी भासा री मानता री बात अबै गांव गळी सूं विधान सभा अर संसद तकात में गूंजे अर इण नैं लेय नैं समूचै भारत भर में बहस नैं चरचावां चाल रैयी है। लारलै दिनां मीडिया क्लब ऑफ इंडिया में भी इण नैं लेय’र सागीड़ी बहस व्ही जिण में सगळा लोगां मान्यो कै राजस्थानी भासा री मानता नैं घणा दिन रोक नैं नीं राखी जा सकै अर भारत री सरकार राजस्थानी भासा नैं मानता नीं देय नैं राजस्थानियां पर अन्याव कर रैयी है। इण बहस में सैसूं बडी बात आ निकळ नैं आयी कै हिन्दी राजस्थानी लोगां पर थरप्योड़ै एक नूंवै उपनिवेसवाद री भासा है अर राजस्थानी भासा नैं आप रो माण-संनमान नीं मिल्यो तो बो दिन अळगो कोनी जिण दिन राजस्थानी लोग हिन्दी रै विरोध में सड़कां पर आय नैं भारत रै इण उपनिवेसवाद रो विरोध करैला।
आपां रा लोग नैं उतरादे भारत रा घणकरा लोगां रै मन में ओ अेक कूड़ो बैम है कै हिन्दी ‘‘रास्ट्रभासा’’ है। इणी कड़ी में अेक बहस रो विसय हो-‘‘क्या हिन्दी राजभासा सै रास्ट्रभासा की ओर अग्रसर हो रही है या राजनीति ने इसे अपने मार्ग से भटका दिया है?’’ इण पर घणी लांबी चाली बहस में आ बात निकळ नैं आयी कै हिन्दी रास्ट्रभासा कदैई नीं बण सकै। क्यूंकै पैली बात तो आ दिखणादे भारत अर उतराद-पूरब रा परदेसां में कठैई किणी रूप में नीं वपराईजै। दूजी बात कै इण नैं मायड़ भासा रै रूप में बोलणिया कोई कोनी। तीजी बात भासा विज्ञान री दीठ सूं किणी भी कसौटी पर खरी नीं ऊतरे। चोथी बात इण में अेकरूपता री जाबक कमी है नैं आ खड़ी बोली रै सागै उर्दू री भेळप अर अरबी-फारसी रै मिश्रण सूं बणी अेक खिचड़ी भासा है जिकी बोल-बतळावण में तो काम आ सकै पण राज-काज नैं कोट-कचेड़ी री भासा नीं बण सकै।
छेकड़ में इण बहस रो नतीजो ओ निकळयो कै भारत सरकार नैं वैदिक भासा संस्कृत नैं रास्ट्रभासा रै रूप में मानता देवण री चेस्टा करणी चाईजै। क्यूंकै संस्कृत भासा सगळी भासावां री जणनी है अर इण रो कोई परदेस में विरोध नीं व्है सकै। इण रै सागै ही आ बात भी आई कै सरकार धर्मनिरपेक्षता री आड लेय’र इण नैं मानण सारू त्यार नीं हुवैला। सरकार त्यार हुवैला जद हुवैला पण ओ सवाल आज भी आप री ठौड़ पर खड़यो है कै इण देस री कोई एक तो रास्ट्रभासा व्हैणी चाईजै। इण में म्हारौ कोई बघार नीं है, जिण लोगां नैं इण बात रो पतियारो नी व्है, तो वै मीडिया क्लब ऑफ इण्डिया री वेबसाइट पर जाय नैं इण नैं परतख देख सकै।
मानता रै इण आंदोलन रै इतिहास में पैली वेळां हिन्दी जगत अर दूजा लोगां नैं ओ ठा पड़ियो कै राजस्थानी भासा नैं लेय’र कोई आंदोलन चाल रैयो है नैं राजस्थान रा लोग अलगाव रै मारग पर जा सकै। हिन्दी रा लोग आ मानण लागग्या कै राजस्थानी जिसी लूंठी भासा नैं बेगी सूं बेगी संवैधानिक मानता मिलणी चाईजै। ’’वैचारिकी’’ पत्रिका रै संपादकीय में छपी एक टीप निजर है। ’’राजस्थानी जैसी भासाओं को मान्यता मिलने से इनका समृद्ध साहित्य हिन्दी में से निकल जायेगा। निकल जाये तो निकल जाये कोई चारा नहीं है। हमें हिन्दी का इतिहास दुबारा लिखना लेना होगा। भले ही उन्नीसवीं सदी के उतरार्द्ध से ही सही।‘‘
दूजी कांनी राजस्थान रो संत समाज भी राजस्थानी भासा री मानता नैं लेय’र आप रा पाचिया टांग लिया है। म्है अठै उण दो राजस्थानी तोपां रो बखाण करणो जरूरी समझूं कै इण संता री वाणी री गूंज आखै भारत में ही नीं, देस-दुनियां में आप रो डंको बजा रैयी है। ऐक है जोधपुर रा जोध संत राधाकिशन जी महाराज अर दूजा रामस्नेही संप्रदाय रा रामप्रसाद जी महाराज। अठे दोवूं संत ‘‘नानी बाई रो मायरो’’ अर भागवत मायड़ भासा में बांच’र सीधा लोगां रै काळजे पर चोट करै। राधाकिशन जी महाराज तो हर ठौड़ आ बात केवै कै आप री भासा संस्कृति नैं मती छोडो।
कळकते री कथा में तो वां आदर जोग कन्हैयालाल जी सेठिया री अमर कविता ‘‘धरती धोरां री’’ सुणा’र इण बात नैं चोड़ै कर दी कै इण आंदोलन में संत समाज भी लारै कोनी। वै सरकार सूं आ खूली मांग करै कै राजस्थानी भासा जिकी करोड़ू लोगां री मायड़ भासा है, इण नैं क्यूं नीं मानता दो? इण रै सागै ही वै आ भी केवै कै इण रो सबूत चाईजै तो म्हारी इण संगत री पंगत में बैठा लोगां री गिणती करलो।
संता री इण दकाळ नैं राजस्थानियां री इण आस नैं भारत री सरकार कद तांई टाळती रेवैला? भारत री सरकार अर प्रदेस रा नेतावां नैं कद चेतौ आवैला? राजस्थान रा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नैं पैलके अमरीका रै मांय राना रा लोगां फटकार लगाई जद वै राजस्थान री विधान सभा सूं राजस्थानी भासा री मानता रो प्रस्ताव पास करायो। ओ प्रस्ताव लारलै 7 बरसां सूं धूड़ चाट रैयो है। अबार तो देस में अर प्रदेस में वांरी पार्टी री इज सरकार है तद राजस्थान रा लूंठा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किसी दूजी फटकार नैं उडीकै? राजस्थानी में ऐक केबत है कै गुड़ दियां ही मरै जद फिटकड़ी क्यूं देवै? राजस्थान रा लोगां गुड़ खवा-खवा नैं तो इण नेतावां नैं मोटा-ताजा कर दिया। अबै फिटकड़ी री आस में ओ फिटापो क्यूं करै?
विनोद सारस्वत,
बीकानेर
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
1 हफ़्ते पहले
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