राजस्थानी मोट्यार परिषद के कार्यकर्ताओं ने की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात। ज्ञापन सौंपा।
प्रदेश के शिक्षक संगठन भी हुए इस मसले पर सक्रिय।
जयपुर। महात्मा गांधी ने कहा था 'मातृभाषा मनुष्य के विकास के लिए उतनी ही स्वाभाविक है जितना छोटे बच्चे के शरीर के विकास के लिए मां का दूध। बच्चा अपना पहला पाठ अपनी मां से ही सीखता है। इसलिए मैं बच्चों के मानसिक विकास के लिए उन पर मां की भाषा को छोड़कर दूसरी कोई भाषा लादना मातृभूमि के प्रति पाप समझता हूं। मेरा यह विश्वास है कि राष्ट्र के जो बालक अपनी मातृभाषा के बजाय दूसरी भाषा में शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे आत्महत्या ही करते हैं।'
देश में ही नहीं दुनियाभर में गांधीजी के इन विचारों का सम्मान होता है और सब जगह मातृभाषाएं ही प्राथमिक शिक्षा का माध्यम है। मगर इसके विपरीत प्रदेश की गांधीवादी सरकार इस मसले पर मौन साधे हुए है। मंगलवार को शिक्षा संकुल में राज्य के शिक्षा अधिकारियों की बैठक लेने के लिए प्रस्थान करने से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनके निवास पर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति की युवा शाखा राजस्थानी मोट्यार परिषद के एक शिष्टमंडल ने जयपुर देहात इकाई के जिला पाटवी बृजमोहन बैनीवाल की अगुवाई में भेंट की तथा इस आशय का ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में लिखा गया है कि अनिवार्य शिक्षा कानून में मायड़भाषा में प्राथमिक शिक्षा देने का प्रावधान है तथा इसी तरह त्रिगुण सेन समिति एवं यूएनओ की शिक्षा समितियों की रिपोर्टों के अनुसार पूरी दुनिया में प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा है। परन्तु राजस्थान इसका अपवाद है। यहां के बच्चों को अपने जन्म से लेकर स्कूल पहुंचने तक मायड़भाषा का जो ज्ञान होता है, वह स्कूल पहुंचने पर पीट-पीटकर छुड़वाया जाता है। जो कि मानवाधिकारों एवं प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। ज्ञापन में यह भी लिखा गया है कि प्राथमिक शिक्षा मायड़भाषा में नहीं होने से राजस्थान के बच्चों का स्वाभाविक विकास अवरुद्ध हो रहा है और बच्चे अपनी सांस्कृतिक जड़ों से कटते जा रहे हैं।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने युवकों की पीठ थपथपाई तथा प्रसन्नता व्यक्त की कि युवा पीढ़ी अपनी मायड़भाषा व संस्कृति के प्रति जागरुकता का प्रदर्शन कर रही है। मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर गम्भीरता से विचार-विमर्श करने तथा राज्य सरकार की ओर से राजस्थानी भाषा व संस्कृति के सम्मान हेतु ठोस कदम उठाए जाने का आश्वासन दिया।
दूसरी ओर राज्य के शिक्षक संगठन भी मायड़भाषा के माध्यम से शिक्षा दिए जाने पर बल देने लगे हैं। राजस्थान शिक्षक संघ प्रगतिशील के प्रदेशाध्यक्ष हनुमान प्रसाद शर्मा ने मंगलवार को इस आशय का ज्ञापन मुख्यमंत्री को भेजा है। ज्ञापन में लिखा गया है कि राजस्थानी एक बहुत ही समृद्ध और विशाल समुदाय की मातृभाषा है तथा यह बड़ी विडम्बक स्थिति है कि आज राजस्थान का विद्यार्थी अपने ही प्रांत की गौरवशाली भाषा और संस्कृति के ज्ञान से अनभिज्ञ है। आजादी के पश्चात राजस्थान में शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में जो गलत निर्णय हुआ उस गलती को सुधारने का अब एक सुनहरा अवसर आया है और राजस्थान की सरकार अगर गांधीजी के विचारों का तनिक भी सम्मान करती है तो प्रदेश में तत्काल मातृभाषा राजस्थानी के माध्यम से अनिवार्य शिक्षा का नियम लागू कर देना चाहिए।
प्रेषक :
डॉ. राजेन्द्र बारहठ, प्रदेश महामंत्री, अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति।
कानाबाती : 9829566084
सत्यनारायण सोनी, प्रदेश मंत्री, अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति।
कानाबाती : 9602412124
Father day
-
-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
1 हफ़्ते पहले
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें