समर चढै़ काठां चढै़, रहै पीव रै साथ।
एक गुणा नर सूरमा, तिगुण गुणा तमय जात॥
चन्द ऊजाळै एक पक, बीजै पख अंधिकार।
बळ दुंहु पाख उजाळिया, चन्द्रमुखी बळिहार॥
खाटी कुळ रो खोयणां, नेपै घर घर नींद।
रसा कंवारी रावतां, वीर तिको ही वींद॥
ऊंघ न आवै त्रण जणां, कामण कहीं किणांह।
उकडू थटां बहुरिणां, बैर खटक्के ज्यांह॥
एक्कर वन वसंतड़ा, एकर अंतर काय।
सिंघ कवड्डी ना लहै, गँवर लक्ख विकाय॥
संकलित काव्य
देख पूनम सावणीं यूं मेघ उमड़ियां।
हाथां झाली राखँडी ज्यूं उभी धिवड़ियां॥
बहिनां जोवे बाटड़ी हियो घणो अधीर।
ज्यूं सावणीं सरित में कुचळे ऊंचौ नीर॥
तीज तिवारां है घणा सासरियां रां सैंण।
वीरां मिलण राखड़ी राह जोवे सहुं बैन॥
बहिन भाई स्नेह रो राखी तणौ तिवार।
धन विधाता सृजियों कर कर करोड़ विचार॥
आई पूनम सावणीं हियो धरे नहीं धीर।
भाईयां बांधण राखड़ी बैना आज अधीर॥
सावणं वरसण वादली कर रहीं दौड़म दौड़।
(यूं)बहिन मौळावें राखड़ी कर कर मन में कोड़॥
वरसे घटा बावली नदि अथंगा नीर।
(यूं) बहिनां बांधे राखड़ी हरख उमंगे वीर॥
चमकी भलीज सावणीं वूठों भळोज मेंह।
बहिना भळीज राखड़ी तूठों भठोज नेंह॥
छायी आकाशां बादळी, दे संदेसो गाज।
बहिनां बान्धो राखड़ी, भाईयां रक्षण काज॥
रक्षाबन्धन सूत्र में, बध्यों बली हमेश।
तिन देव चौकी भरे, ब्रह्मा विष्णुं महेस॥
सुरग पताळ मरतुळोक में, बहीना घणों अरमान।
बळराजा री राखड़ी, सहं ठौड़ यजमान॥
(संकलन:- मंछाराम परिहार)
मोंठ बाजरी मतीरा खेलर काचर खांण।
अन्न-धन्न धीणा धोपटा वरसाळे बिकांण॥
ऊंट मिठाई अस्तरी सोना गेणो शाह।
पांच चीज पृथ्वी सिरे वाह बिकांणा वाह॥
उन्नाळै खाटु भळी सियाळे अजमेर।
नागाणौ नितको भळो सावणं बिकानेर॥
मरु रो पत माळवो नाळी बिकानेर।
कवियाँ ने काठी भळा आँधा ने अजमेर॥
जळ ऊँड़ा थळ उजळा नारि नवळे वेश।
पुरुष पट्टाधर निपजे आई मरुधर देश॥
(संकलन%-मंछाराम परिहार)
मांणक सूं मूंगी घणी जुडै़ न हीरां जोड़।
पन्नौं न पावै पांतने रज थारी चित्तौड़॥
आवै न सोनौं ऒळ म्हं हुवे न चांदी होड़।
रगत धाप मूंघी रही माटी गढ़ चित्तोड़॥
दान जगन तप तेज हूं बाजिया तीर्थ बहोड़।
तूं तीरथ तेगां तणौ बलिदानी चित्तोड़॥
बड़तां पाड़ळ पोळ में मम् झुकियौ माथोह।
चित्रांगद रा चित्रगढ़ नम् नम् करुं नमोह॥
जठै झड़या जयमल कला छतरी छतरां मोड़।
कमधज कट बणिया कमंध गढ थारै चित्तोड़॥
गढला भारत देस रा जुडै़ न थारी जोड़।
इक चित्तोड़ थां उपरां गढळा वारुं क्रोड़॥
संकलित काव्य
धड़ धरती पग पागड़ै, आंतां तणो घरट्ट।
तोहि न छांडै साहिबो, मूंछां तणो मरट्ट॥
भड़ बिण माथै जीतियो, लीलो घर ल्यायोह।
सिर भूल्यो भोळो घणो, सासू रो जायोह॥
खाग खणकै सिर फटै, तिल तिल माथै सींब।
आलां घावां ऊठसी, धीमो बोल नकीब॥
कठण पयोधर लग्गतां, कसमसातो तूं कन्त।
सेल घमोड़ा किम सह्या, किम सहिया गजदन्त॥
मैं परणन्ती परखियो, मूंछां भिड़ियो मोड़।
जासी सुरग न एकलो, जासी दळ संजोड़॥
ढोल सुणंतां मंगळी, मूंछां भौंह चढंत।
चंवरी ही पहचाणियो, कंवरी मरणो कन्त॥
हथलेवै री मूठ किण, हाथ विलग्गा माय।
लाखां वातां हेकळो, चूड़ो मो न लजाय॥
करड़ा कुच नूं भाखतो पड़वा हंदी चोळ।
अब फूलां जिम आंगमै, भाळां री घमरोल॥
(संकलित काव्य)
सोरठ रंग री सावळीं, सुपारी रे रंग।
लूंगा जैड़ी चरपरी, उड़ उड़ लागै अंग॥
सोरठ उतरी महल सूं, झांझर रे झणकार।
धूज्या गढ़ रा कांगरा, गाजी गढ़ गिरनार॥
सोरठ साकर री डळी, मुख मेल्यां घुळ जाय।
हिवड़ै आय विलूंबतां, हेमाळो ढुळ जाय॥
ऊंचो गढ गिरनार, आबू पै छाया पड़ै।
सोरठ रो सिणगार, बादळ सूं वातां करै॥
जिण सांचै सोरठ घड़ी, घड़ियो राव खंगार।
वो सांचो तो गळ गयो, लद ही गयो लुहार॥
सुण बींझा सोरठ कहे, नेह केता मण होय।
लाग्यां रो लेखो नहीं, टूटा टांक न होय॥
सोरठ थां में गुण घणां, रतियन ऒगण होय।
गूंदगरी रा पेड़ ज्यूं, कदियन खारो होय॥
सोरठ तूं सुरनार, सिर सोने रो बेहड़ो।
पग थांभो पणिहार, बातां बूझे बींझरो॥
बींझा बीण बजाय के, गायो सोरठ राग।
झोला खावे नाग जूं, जागी सोरठ जाग॥
(संकलित काव्य)
हित कर जोड़े हाथ,कामण सूं अनमी किसो।
नमिया तिलोकीनाथ, राधा आगळ राजिया॥
जाणै हरिया रुंखड़ा, नीरां हन्दो नेह।
सूका ठूंठ न जाणही, कीं घर बूठा मेह॥
साठी चांवल भैंस दूध, घर सिळवंती नार।
चौथी पीठ तुरंग री, सुरग निसाणी चार॥
दूरां सूं कह देत, सोभा घर संपत तणीं।
हिवड़ा हन्दो हेत, नैणां झलकै नाथिया॥
मगर मकोड़ो मूढ़ नर, तीनूं लाग मरन्त।
भंवर भुजगर सुघड़ नर, डस कर दूर रहन्त॥
पान झड़तां देख के, हंसी जो कूंपळियांह।
मो बीती तो बीतसी, धीरी बापड़ियांह॥
कोयल बोल सुहावणां, बोलै इमरत वैण।
किण कारण काळी भई, किण गुण राता नैण॥
बागां बागां हूँ फिरी, कठै न लाध्या सैण।
तड़फ तड़फ काळी भई, रोय रोय राता नैण॥
आग लगी वन खंड में, दाइया चंदण बस।
हम तो दाइया पंख बिन, तूं क्यूं दाझै हंस॥
पान मरोड़या रस पिया, बैठया एकण डाळ।
तुम जळो हम उड़ चलें, जीणों किताक काळ॥
घर मोरां, वन कुंजरां, आंबा डाळ सूवांह।
सज्जन कुवचण,जलमघर,बीसरसी मूवांह॥
उदियापुर री कामनी,गोए काढे गात्र।
देव तारा मन डगे, मानवीया कुण मात्र॥
चलो व्रज नार चलो ब्रजनार
खेल देखो पनिहारन का
रुमक जुमक चाल चलें,गज छुटा फौजदारन का
तेरे ललाट पे बूंद पर्यो
जाणे हार तुटा लखचारण का
सेंथापुर के आई खड़ी
जाणे घाव लगा तलवारन का
नगर ठठा मुलताण में, ऐसीं नहिं कामनी
गले मोतनकी माल, दमंके जणे दामनी
छुटा मेली केश, अंबोडो छोड़ के
उभी सरोवर पाल, मृगली अंग मरोड़कें
जीमण पांत जठेह मिल भड़ आवे मोकळा।
तणियां खाग तठेह मांडे पैंड़ न मोतिया॥
मंजन करे सधीर मन सूरां धारां सार।
कायरड़ा मंजन करै आंसू धार मझार॥
मूंछ नाक सिर रो मुकुट ससतर साम सनाह।
साबत लायो समर सूं कै नहं लायो नाह॥
मूंछ केस खंडत नहीं नाक न खंडत कोर।
पड़ी पुळंता पाघड़ी सुकुलीणी तज सोर॥
सेहणी सब री हुँ सखी दो उर उळटी दाह।
दूध लजाणो पूत सम वळय लजाणौ दाह॥
मणिहारी जा री सखी अब न हवेली आव।
पिव मूवा घर आविया विधवा किसा बणाव॥
यो गहणो यो बेस अब कीजै धारण कन्त।
हूं जोगण किण काम री चूड़ा खरच मिटंत॥
बिन मरियां बिन जीतियां धणी आविया धाम।
पग पग चूड़ी पाछटूं जे रावत री जाम॥
उजड़ चाळे उतावळो रोही गिण न रन्न।
जावे धरती धूंसतो धन्न हो घोड़ा धन्न॥
लीला थारे पांव ने सोने की खुरताळ।
पग पूंजूं रैवंत तणां भेंटायो भरतार॥
जंग नगारां जाण रव अणि धगारां अंग।
तंग लियतां तंडियो तोनै रंग तुरंग॥
अस लीलो पिव पीथळो चंपावती ज नार।
ऐ तीनू ही एकठा सिरज्या सिरजणहार॥
कोई घोडो कोई पुरखडो कोई सतसंगी नार।
सरजण हारे सिरजिया तीनू रतन संसार॥
हळ तो धूना धोरियां पन्धज गग्धां पांव।
नरां तुरां अर वनफळां पक्कां पक्कां साव॥
जन्म अकारथ ही गयो भड़ सिर खग्ग न भग्ग।
तीखा तुरी न माणिया गोरी गळे न लग्ग॥
घर घोडो पिव अचपळो बैरी वाड़ै बास।
नितरा बाजै ढोलड़ा कद चुड़लै री आस॥
राव गुमानसिंह
रानीवाड़ा ( मारवाड़ )
मात सिखावै गोद में, वाळक सुत नें बात।
रण मारियां मां अंजसै, रण भाज्यां लज जात॥
सुत मरियो हित देस रै, हरख्यो बन्धु समाज।
मां नंह हरखी जनम दे, जतरी हरखी आज॥
चून चूग्यो चढ चूंतरै, कर कर खैंखाराह।
बदळो आज चुकावस्यां, धम अरिअस धारांह॥
टहटहु घुरै त्रमांगळा, हुवै सींधव ललकार।
चित कूंकभ चैवां चहैं, आज मरण त्यूंहार॥
किताक राखै काळजो, किताक नर झूंझार।
आमन्त्रण आयो अठै, आज मरण त्यूंहार॥
मतवाळा घूमैं नहीं, नंहु घायल घरणाय।
बाळ सखी सो द्रंगड़ो, जिण भड़ बपड़ कहाय॥
घर घोड़ा ढ़ालां पटळ, भालां थंभ बणाय।
वे सूरा भोगे जमीं, अवर न भोगे काय॥
मंड़ती हाटाँ मौत री, मुरधर रे मैदान।
मूंड़ कटे लड़ता मरद, अनम वीर कुळ जाण॥
दूजा ज्यूं भागो नहीं, दाग न लागो देस।
बागां खागां बांकड़ो, महि बांको महेस॥
वीररस
ए वतन है एक रगत है, दिल्ली हो या गोहाटी
म्हानें है जीव सू प्यारी, भारत री पावन माटी
इणरे खातिर लड़या सूरमा, झड़पड़िया मेजर भाटी
हंसता-हंसता शीश दे दियों, इणरों मोल चुकावांला
इण धरती रा लाडेसर, म्हे गीत जीतरा गांवा ला
हिमाले री चोटी माथे, तिरंगा फहरावांला
गांवाला म्हे गीत जीत रा घर घर ढोल घूरावांला
इण धरती रा लाडेसर, म्हे गीत जीतरा गांवांला॥१॥
सुणलो सबही कान खोल कर, नी देस्या प्यारों कसमीर
जो कोई करसी कुचमादी तो, म्हें देस्या उकी छाती चीर
आ हे म्हारी माय़ड धरती, म्हें ईरां हां पूजारी
याद कराळा कुरबानी म्हें, अमर शहीद आहुजा री
सीमा खातिर लड़या सूरमा, इणरो मोल चुकावांला
इण धरती रा लाडेसर म्हें गीत जीतरां गांवांला ॥२॥
निरमल जल री नदियां बह रहीं, गंगा जमुना रो पाणी
राम-किशन री जलम भोम आं, गुर गोविंद सा बलिदानी
जौहर री ज्वचाला में भभकी, पत राखण पदमण रानी
गांव-गांव में गूंज रहीं है, नानक री इमरत वाणी
इण धरती ने नमन निरन्तर, शतशत शीश झुकावांला
इण धरती रा लाड़र म्हें गीत जीतरा गांवांला
हिमाळे री चोटी माथे, तिरंगो फहरावांला
इण धरती रा लाडेर म्हें गीत जीतरां गांवांला ॥३॥
रेन रंगीली छैल छबीली नहीं पिया बिन रेवे जी॥
इस्क करो तो सुणो काकीजी इतरो करौ करार।
करना तो डरना नहीं स रे है खांडा की धार॥
इस्क मांयने केई डूबग्या करलो खूब विचार॥
मन में उठे हवडका पिडन बिना अब व्याकुल नारी।
खारा जैर लागै मोंहे सब हीं झाल अंग में उठे।
खाली सब ही महल माळिया देख भिड़कणी छूटे॥
आडां ऊमरकोट रां जाडां थळां जुहार।
वड दाता वैरौ वसै सोढा कुळ सिणगार॥
आठ पहर पौहरा रहै कसिया रहै तुरंग।
मारवाड कांकड सिंध सिर ऊमरकोट दुरंग॥
राव गुमानसिंह
रानीवाडा(मारवाड)