पद्मसेन कूँवर सुघर ताघर नारि सुजान। ता उर इक पुत्री प्रकट, मनहुँ कला ससभान॥ मनहुँ कला ससभान कला सोलह सो बन्निय। बिगसि कमल-स्रिग, भ्रमर, बेनु, खंजन, म्रिग लुट्टिय। छप्पति गयंद हरि हंस गति, बिह बनाय संचै सँचिय। मनहुँ काम-कामिनि रचिय, रचिय रूप की रास। सामुद्रिक लच्छिन सकल, चौंसठि कला सुजान। सषियन संग खेलत फिरत, महलनि बग्ग निवास। मन अति भयौ हुलास, बिगसि जनु कोक किरन-रबि। यह चाहत चष चकित, उह जु तक्किय झरंप्पि झर। हरषत अनंद मन मँह हुलस, लै जु महल भीतर गइय। तिहि महल रष्षत भइय, गइय खेल सब भुल्ल। कीर कुंवरि तन निरषि दिषि, नष सिष लौं यह रूप। कुट्टिल केस सुदेस पोहप रचयित पिक्क सद। सेत वस्त्र सोहे सरीर, नष स्वाति बूँद जस। नैनन निरषि सुष पाय सुक, यह सुदिन्न मूरति रचिय।
बाल वैस, ससि ता समीप अम्रित रस पिन्निय॥
हीर, कीर, अरु बिंब मोति, नष सिष अहि घुट्टिय॥
पदमिनिय रूप पद्मावतिय, मनहुँ काम-कामिनि रचिय॥
पसु पंछी मृग मोहिनी, सुर नर, मुनियर पास॥
जानि चतुर्दस अंग खट, रति बसंत परमान॥
कीर इक्क दिष्षिय नयन, तब मन भयो हुलास॥
अरुन अधर तिय सुघर, बिंबफल जानि कीर छबि॥
चंचु चहुट्टिय लोभ, लियो तब गहित अप्प कर॥
पंजर अनूप नग मनि जटित, सो तिहि मँह रष्षत भइय॥
चित्त चहुँट्टयो कीर सों, राम पढ़ावत फुल्ल॥
करता करी बनाय कै, यह पद्मिनी सरूप॥
कमल-गंध, वय-संध, हंसगति चलत मंद मंद॥
भमर-भमहिं भुल्लहिं सुभाव मकरंद वास रस॥
उमा प्रसाद हर हेरियत, मिलहि राज प्रथिराज जिय॥
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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