एक गांव में अेक गवैयौ रैवतौं हौ। अेक दिन गांव में रात रा गीत-संगीता रो नूंठौ आयोजन व्हियौ। वो पक्की राग में गांणौ गावतौ हौ। रांगा रा मोटा-मोटा जांणकार सुणणिया उणरै, औळू-दोळू बैठा हां। भीड़ देखने अेक मिनख ई उठै जमग्यौ। वौ देखियौ गवैयौ घंाटी हिलाय-हिलाय अर बाकौ फाड़-फाड़नै उंचा सुर में गावती हौ। सुणण वाळा सगळा ई मस्त व्हैगा। घणा दिनां बाद इण तरै रौ आयोजन व्हियौ हौ। सगळा लोग मस्त हा। वै गवैया री तारीख कर रिया हा। पण इण सब में एक मिनख वां सगळा सूं उंचै रह्यौ। वौ गवैया रौ असंली जांणकर हौ, जेड़ौ दूजा आज तांई मिळियौ। वौ गांणौ सुणतौ-सुणतौ जोर-जोर सू रोवण लागौ। गवैयौ मिनख रो घणौ-घणौ औसांण जतावतां कह्यौ-म्हनै आज अणहूंती खुसी है के म्हारी राग आपरे माथै इतौ असर करियौ कै आपरी आंख्या में आसुवां री झड़ी मचगी। इण दुनिया में हाल पक्की रांगा आप जैड़ा असली जांणकर बैठा तौ है, आ बात जाणनै म्हनैं घणौं मोद व्है। घणी खुसी व्हिई की आप जेड़ा राग रा जानकार इण आयोजन में पधारिया। सब एक दूजा कानी देखण लागा। इता में मिनख रोवतौ-रौवतौ ई कह्यौं-अबै मोद गुमेज री बातां छोड़ौ अरले सकौ तो आखरी वगत रांतजी रो नांव लेलौ। मोद-फोद तौ सगळौ लारै धरियां रैय जावैला, फगत रांमजी रौ नांव साथै चालैला। अबै आपरौ घड़ी-पलकां रौ सांस हैं। म्हारा बकरा नै ई औ बोबाड़िया रौग लागो हौ। बापड़ौ बोबाड़ा करती-करती उणी सांयत प्रांण छोड़ दिया। आपनै ई बकरा वालौ सागै रोग लागौ हैं। अबै धन्तर वेद ई आपनै बचा नीं सके। परारा री साल म्हारौ बकरौ भूंडै ढाळै दौरौ घणौ मरियौ हौ। आपनै उणी भांत बोबाड़ा करतां देख म्हनै बकरा री याद आयगी। इण सूं म्हनै रोज आयग्यौ। म्हारौ कैणौ मानौं, ले सकौ तौ दोय-च्यार राम रा नांव लेलौ। अबारूं आपनै मरणौ पड़ेला। मिनख री बात सुणनै सगळां नै ई हंसी छूटगी। तद मिनख आंख्या पूछतौ फैर कह्यौ-अबारूं हंसौ भला ई, सेवट रोवणौ पड़ैला। मरिया पछै थानै म्हारी बात रौ साच आवैला। म्हारौ बकरौ भी इण तरै घणौ दुखी हो। सगळा उणनै राग रौ मतलब समझायौं पण उणनै तो इतरौ हीं समझ मं आयौ के गवैया नै नै ई औ बोबाड़िया रोग लागौ हौ।
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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