एक सेठाणी बेरा माथै पांणी सींचण गई। वा डोली उरायनै उंची खांचै तौ डोली खाली-री-खाली। डोली भरीजी कोनी। वा लुळ नै मांय झांक्यौं तौ उणनै किणी मिनख रौ झबकौ पड़ियौ। बोली-ओ मांय कुण बैठौ मायं कुण बैठौ म्हारी डोलिया खाली करे ? रसोई रौ अबैठौ व्है। वौ भूत हौ। कह्यौ, म्हैं भूत हूं। बेरा रौ भंवणिया चरराटा घणा करै। म्हनै इणरी चूं-चूं सूं नींद नीं आवै। म्है म्हारै हाथां इणनै गावा घी रौ वांगण देवूंला। थूं म्हनैं अेक कटोरौ भरने घी लायदै। सेठाणी कह्यौ - घी तो तौ कटौरौ भरनै घी लायदै। सेठाणी कह्यौ-घी तो कटौरा री ठौड़ कूड़ियौं भरने लाय दूं। पण पछै ई थूं डोलियां खाली करे तौ। म्हनै बचन दे, के आज पछै म्हारी डोलियां खाली नीं करैला, अर म्हारौं कीं बिगाड़ नीं करैला। भूत कह्यौ - थूं म्हनै कचोळा री ठौड़ कूड़ियौं धांमियौं, इण सूं म्हैं राजी हूं। थूं घी नीं लावै तौ ई थारज्ञै कीं बिगाड़ नीं करूलां। पक्कों बचन दूं हूं। थूं म्हनै चैथै-पांचवै वांगण सारू गावा घी रौ कटौरौ डोली रै मांय धरनै पुगाय दिया कर। सेठाणी जांणियौं के अबै तौ औ वाचा में बंधग्यौं। घी नीं लावूं तौ ई म्हारी बिगाड़ नीं करै। पछै फालतू आ वांगण री लाग क्यूं भरू। वां कह्यौ, घी तौ म्हारै घणौं ई है। पण लावण सारू म्हारै कनै बासण कोंनी। थूं म्हनैं हीरा मौत्या रौ अेक कचोळौ लाय दै तौ म्हंै रोजीना थारै वांगण पुगावती रैवूंला। भूत उणरै हीरा मौत्या रौ अेक अमोलक कचोलौं सूंच दियौ। सेठाणी कचोळौ घरे लायनै जाब्ता सूं धर दियौ। पण घी लावणौं तो अगळौं वा तौ पाछी उणरी बातई नीं करी। भूत रोज वांगण सारूघी मांगतौ पण सेठांणी पिछतावौं करनै कैवती-पांतर गी। घी-घी घोखूं तौ ई मौका भूल जावूं। कालै जरूर लावूंला। भूत नै गावा घी री भावड ़अणहूंती ही। वौ राजीना सेठाणी नै पूरी-पूरी भुळावण दैवतौ। पण सैठाणी तौ टाळमटोळ करती रेई। सेवट अेक दिन वो काठौ आंती आयनै बौल्यौ-सेठाणी, धायौ थारा वांगण सूं, म्हनैं म्हारौ कचैळी तौ पाछौ दे। सेठाणी हसती थकी जबाब दियौ - आज नीं कालै जरूर लावूंला। भूत कह्यौ - थारै इण कालै रौ तौ अंत ई कोनीं। सेठांणी बोली था में अेड़ी करामंत व्है तौ थूं काळै पछै इण आज नै पाछौ मत आवण दै। जिण दिन थूं औ कांम कर दियौ तौ म्हैं उणी दिन थनै ढुळढुळतौं कचैळौं गावा घी सू भरनै लाय देवूंला। भूत कह्यौ, आ तौ म्हारा बस री कोंनीं। सेठाणी कह्यौ-जद थारै बस री बाता कोनीं तौ पछै जावणौ म्हारै बस री ई बात कोनीं।
Father day
-
-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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