एक मिनख गंगाजी गियौ। पूरी तैयारी रै सागै। हरद्वार सूं पाछौ वहीर व्हियौ तौ उणरै जची के दिन दिल्ली निजरां सूं देखलूं तो कैड़ौक व्है। अबै तौ म्हारा ई फुल गंगाजी में आवैला। खुद रै आवण रौ तौ मौको पाछौ नीं बणैला। राजी-राजी वौ हरद्वार सूं आवण रै वगत दिल्ली उतरग्यौ। दिल्ली देखणै वौ घणौ राजी व्हियौ। ऊंचा मैला, पक्की सड़कां अर सुरंगा बाग-बगीचा। जमना रै काठै बसियोड़ी। आ नगरी तौ सुरगापुरी नै ई मात करै। मिनख नगरी देखण में मस्त हौ के तीन च्यार लफंगा उणरै लारै पड़ग्या। वौ ग्वार व्है ज्यूं दिखतौ हौ। पैली वळा दिल्ली आयौ हौ। वौ तौ आपरै मन परवांण धौळी-धौळी सै दूध जांणतौ। मिनख जात रौ पतियारौ करतौ। पण लफंगा तौ अैड़ा भोळा मिनखा री इज टौय में रैवे। वै उणरै लारै-लारै अटकळ विचारता, निरी दूर लारौ करता रह्या। मिनख अेकांत ठौड़ देखनै बैठग्यौ। उगां नै औ ई मिस लाधौ। तुरंत उणनै पजावण री विचारली। मिनख ऊभौं व्हियौ तौ वै उणरै दौळा व्हैगा। कह्यौ-थू पवितर आतमा रौ अपमान व्हियौ। थारी मौत तौ नीं आई। कोतवाळ कनै चाल। दस साल जेळ में पंड़ियौ सिडै़ला। बूढ़ो है, पण इतौं ई होस नीं। मिनख कह्यौ-म्हैं गांव रौ अबूझ हूं, म्हनै ठाह कोनीं। भूल संू गलती व्हैगी, हाथ जोड़नै माफी चावूं। कीं डंड भरणौ व्है तौ पावली-आठ आंनी अठै ई लै लिरावौ। म्हनै कोतवाळ करै मत घसीटौ। कीकर ई पिंड छूटै जकी बात करौ। थांनै आसीस देवूंला। ठग कह्यौ-बदमास, थूं पवितर आतमा री कीमत चार आनां ईक रै। आ तौ फैल जुलम री बात हैं। थनै कोतवाळी में लै जांवणी ई पड़सी। थूं जांण करनै आ पाप करियौ। मिनख हाथ जोड़तो बौल्यौ-म्हनै इण में कांई हाथ आवै ! आप हुकम दिरावै तौ आ सगळी ठौड़ म्हारै हाथां सफ कर दूं। पण ठग किणरां मानै। सगळा दोळा व्हिया जकौ रोवता-ई उणरौ सैंग माल मतौ खोस लियौ। फगत पैरण नै धोतड़ी लारै छोड़ी। मिनख जांणियौ के इता में ईं पिंड छूटौ। दस बरस री जेळ तौ भुगतणी नीं पड़ै। पण उणरा मन में पूरौ बैठग्यौ। कठैई फेर गलती व्हैगी तो अबकै लारौ नीं छूटैला। इण विचार सूं पूछयो-अबै तौ म्हनै सावळ रिह्यौ।
एक सेठ तिमंजली हवेली बणाई। घणा कोड़ सू हवेली रौ पूजन करायौ। गांव रा जमींदार नै खास तौर सूं निवतिया। उणनै राजी करण सारू हवेली रा सिरै मोड़ माथै वारै पिताजी रौ चितराम लगायौ। चितराम नै बतावती वगत सेठ कह्यो-छोटे मूंडै मोटी बात तो नीं करू पण तौ ई म्हनै कैणौ पड़ेला के मायतां रा चितराम सूं हवेली री छिब सुधरग्यी। जमींदार कह्यौ-क्यूं सेठा, साची कैजो बापजी री करड़ी निजर रौ तौ जीवता सिंघ बिचै ई घणौं वतौ डर नीं लागे ? सेठ जवाब दियौ-इण में कांई कूड़ी बात। आज दिन ताई वारी धाक सूं मोटा चोर अर धाड़ायती रा थर-थर कांपे ! जमींदार मूछंया माथै हाथ फेरनै घांटी हिलायनै बोल्या-हां, इण में कांई मीन मेख। उण दि री बात पछै तीन चार बरस बीतग्या। अेक दिन जमींदार मतै चलायनै सेठां री हवेली पधारिया। सेठ घणा ई राजी व्हिया। बोल्या-की हुकम व्है फरमाऔ। जमींदार कह्यौ-यूं ईं मन में जचगी, सेठा सूं मिळण री। की हिसाब किताब ई करणौ हैं। सेठ अचरज सूं पूछ्यौ-हुकम, किसौ हिसाब किताब, म्हनै कीं जाच कोनीं। जमींदार बात बदळनै कह्यौ-अैड़ी कीं खास बात कोनीं। घर री बात हैं। बोले सेठां, रह्या तौ राजी खुसी ? कींडर भै तौ कोनी। सेठ कह्यौ-अै बातां आप सूं काई छांनी ? आणंद रा थाट हैं। नरमाई सू पाछौ कह्यौ-म्हारा कैणा परताप ! परताप तौ पुराणा जमींदारा रा हैं। पछै सेठां नै बात समझाई-इण हवेली री प्रतिस्ठा नै आज चैथौ बरस लागण आयौ। उण दिन आप खुद ई फरमायौ के जे आपरै सिरै म्हारै बापजी रौ चितराम नीं व्हैतो तौ आपरी लाखूं रिपिया री माया पार व्है जाती। आठ पौर बतीस घड़ी वे हवेली री रूखाळी करता। उण रूखाळी पेटै तीन बरसां रा बीस हजार रिपिया कीं वती बात कोनीं। घणा बरसा रौ हिसाब भेळो व्हियां आपरै माथै घणौ भार पड़तौ। सगळी बात सुणतां ई सेठा रा तौ हौसला ई गुम व्हैगा। पण जोर ई कांई करै ! माडांणी मुळकण री कोसिस करी। कह्यौ-म्है तो बापजी रौ मान राखण सारू चितराम लगायौ हौ, आप औ बोझौ दे दियौ। जमींदार रिसां बळनै कह्यौ-सेठां, औ तौ थारौ धापनै नुगरापणौ है। सेठ बापड़ो कांई करतौ ! जांणग्यौ जमींदार रिपिया तौ किणी भाव छोड़ै नीं। पछै हील हुज्जत करणी फालतू हैं। हवेली में जायनै बीस हजार रिपिया लायौ। चितराम रै माथै धरनै जमींदार रै निजर कर दिया। मन में घणौं ई पिछतावौ करियौ के जमींदार तो कंवळै टिरियोड़ी ई खोटौ।
आजकल घणकरा घरां में लुगाया रो राज है अ‘र लुगायां रौ ईज बोलबालो हैं। मूछाला मरद बापड़ा घर में भड़ती बगत मूछा नीची कर‘र ड्योढ़ी में बढ़े। म्हारा ई कई मींत मिळै तो आपरी घर गाथ सुणावे। उणमें कीं बातां सुख री व्है तो केई दुख री भी व्हैं। मलै मिनळ आळा लोग अर मींत आपरौ जिकौ तजुरबो मनै सुणावै, उणरे मुजब वांरी घरवाली या जोड़ायत भांत-भांत रा सुभाव अ‘र आदतां रै कारण न्यारी ओळखाण राखे नै आपरै घरधणी नै उणी ढंग सू परोटे। मोटै तौर सूं बै इण मुजब देखण में आवै। केई भायलां री घरवालीं पतिदेव सूं बेसी वांरी जेब सू हेत राखे अ‘र तनखा लावतां ईपूरी तनखा आपरे कबजे कर ले अ‘र घरधणी बिचारौ गुटका-बीड़ी सारू ई पईसा ने तरसै। वांरी लुगायां नित नवा कपड़ा पेहरै अ‘र वै भाई लोग वार-तिवांर नै ई नवा कपड़ा सारू उडीकता रेय ज्यावै। पति परमेसर रै हाथ में पईसा देखतां ई ए लुगायां पतंग री डोर ज्यूं खेच‘र पईसा आपरे हवाले करले। केई देविया तो दोयां च्यारां छानै-ओले पति री जेबां टटोळती रेवै अ‘र चोरियौड़े धन सूं बजार में चाट-पकौड़ी खावै। कदेई-कदास गुटका सुपारी रो ई भाग लगावै। ऐड़ी लुगायां कसाई री श्रेणी में गिणीजै। दूजै कांनी केईघर लिछमी ऐड़ी भी व्है, जिकी आपरे पतिदेव नै खोळे रै टाबर ज्यूं राो अ‘र उणरै खाणै-पीणै सूं लेय‘र कपड़ा-लतां तांई पूरौ ध्यान राखै। घरधणी रे दियोडे़ माल-असबाब सूं लेयर उणरै कागद-पानां तांई सगळी चीजां संभाल र राखै, उणरी आतमा ने कदैई कष्ट नीं पोंचावै अ‘र सदा खुश राखण रौ जतन करै। ऐड़ी लुगायां मां रूपी पत्नी कहीजै। पण केई घरवालियां ऐड़ी भी हुवै, जका काम-काज सूं तो किनारौ राखैं पण खावण-खंड़ी घणी व्है। इयां लिछमीयां री खुराक तो अणूती व्है, पण काम रै नावां माथै फळी ई नीं फोडे। रोट तोड़णा अ‘र नींद काढणी इयां रे खास सुभाव में गिणीजै। काम पड्यां घरधणी नै गाल काढ़णै सूं लेय‘र इज्जत उतारण तांई कोई औसर नीं चूकै। आपरे पति नै रमतियो समझण आली ए लुगायां कर्कसा लुगायां कहीजै। इणरै टाळ केई लुगाया पतिदेव रै हुकम बिना पावंड़ो ई नीं भरै, अ‘र पति री इंदा मुजब घर चलावै अ‘र पति ने प्रिय भोजन रो भोग लगावै, मान-मनवार सागै जिमावै, पछै खुद खावै, वा पत्नी आग्याकारी घर लिछमी कहीजै। ऐड़ी लुगायां पति रै एक इशारै माथै दोड़ती निजर आवै। केई लुगायां इसी ई व्है, जिकी आपरे पति नै देखतां पाण हरख करै, हंसी-ठिठोळी करै अ‘र जे घणै अरसे सूं पतिदेव परदेसां सू पधार्या व्है तो उणरौ कोड़ करै, उच्छब करै अ‘र आरती उतारै। भांत-भांत रा जीमण जिमावै नै खुद ई उणरै सागै भोजन करै, वा घरवाली मित्र पत्नी कैवावै। केईक लुगायां ऐड़ी भी व्है, जिकी पति रै रीस कर्या सूं रीसां नीं बळै, नीं पाछौ तूटतौ जबाब देवै। सदैव मन में घरधणी रो ड़र खटकतौ रेवै, अ‘र भूले-भटके पतिदेव हाथ उठायदै तो ई चुप-चाप सहन करलै, पण मन में पति रै वास्तै कदेई दुरभावना नीं राखै, ऐड़ी लुगाया दास पत्नियां कहीजै। इण भांती लुगाया रे सुभाव रै ढ़ालै वांरी विगत अठै दीवी है। आपई आप रै मन में तौल‘र निरणै करो कै आपरी घरवाली उपर लिख्यौड़ी लिछमियां री कुणसी केटेगरी मंे आवै अ‘र आप किता पाणी में हौ। पति देवां रा कांई-कांई रूप व्है अ‘र कांई कुलक्खण पाळै, इण विगत रै सागै फेर कदेई हाजर होवूंला।
एक जाट री मां मरी तौ वौ गांव रा पंडतजी नै गंगाजी वहीर करिया। हरद्वारा सूं तीसेक मील पैलां पड़तजी रौ सासरौ हो। तीच-च्यार बरसां सूं सासरै जावण रौ काम नीं पड़ियौ। अर कांम पड़तौ तौ ई इत्ती अळगी पड़ियौ भांय जावण सारू खरचो माथै पड़तौ। चैधरण रा फूल गंगाजी घालण रौ औ टांणौ देखियौ तौ वै केतां पांण मांनग्या। पण पंडत रा मन में कुटळाई आई। जाट सूं हरद्वार रौ पूरौ भाड़ौ लयनै वै आपरै सासरै ई मौज करणी चावता। फूलां नै सासरा री नाड़ी में छाने सूं पटक देवूंला। किणई नै कांई ठाह पड़ै। पंडतजी तौ सोची जकी ई करी। जाट सूं ठेठ हरद्वारा रौ आवण-जावण रौ खरचै लेयनै वै तो सीधा आपरै सासरे गिया। उठे आठ-दस दिनां तक आराम सूं रहयौ। खरचा मांय सूं खासा भला दांम बचाय लिया। दिनां री गिणती करनै वै पाछा हिसाब सूं गांव पूराग्रूा। जाट आपरी मां रै लारै घणौ ई खरचै खातौ करियौ। गंगाजळी वरतायनै सगळी न्यात निंवती। नांमी मौसर करियौ। केई दिन बीत्यां पछै जाट नै खबर पड़ी के पंड़तजी तौ ठागौ करग्या। ठेक हरद्वार गिया ई कोनीं। सासरा सू ई पांछा वळग्या। उठा री नाड़ी में फूल पटकनै झूठ ई गंगाजी रौ नांव ले लियौ। आ बात जाट नै अणहूंती खारी लागी। पंडतजी नै औळवौ देवतां कहयौ- पंडतजी, म्हैं आपनै म्हारा खास घरू जांण नै मां रा फूल सूंप्या। पण म्हनै रात रा सपनौ आयौ। सपा में मां आयनै म्हने कहयौ - पंडतजी आपरै सासरै ई म्हारा फूल पटक दिया। गंगाजी में घालिया बिना म्हारी गति नीं व्हैं। अबै कीकर ई करनै म्हनै गंगाजी पूगती कर। गंगाजी पुगायां बिना थारौ सगळौ खरचै-खातौ अकारथ जावैला। जाट री बात सुणनै पंडतजी कह्यौ - चैधरीं, म्हनैं तौ थारी मां, लखंणा बायरी ई दीसी। म्हारा सासरा सूं इतौं गौतौं खायनै पाछी अठै गांव कांई खावण नै आई। उठीनै ई सीधी गंगाजी पूग जावती तौ उणनै कुण बरजतौं हौ। थारौ खरचो-खातोै ई सुक्यारथ लाग जावतौ अर उणरी ई गति व्हैं जाती। पण लखणांबायरी लुगायां रौ कोई कांई करै। तबड़का मारती अठीनै नी आयनै उठीनै ई बळ जावती तौ कांई जोर आवतौ। गंगाजी तौ उठा सूं साम्ही नैड़ा हा। पंडत रौ पडूंतर सुणनै जाट घणों सरमीझियौं।
आपणै ग्रंथा मांय बच्चिया रौ लालन-पालण अर ताड़ण पर जोर हैं। अठै गौर तलब है क आज बच्चा रौ लालन-पालण रो तो पतौं ई गायब हो गयै क्यूंकि मों अर बच्चा रै बीचै अंग्रेजी पालणां आं ग्या। मां रे पलंग पर बच्चियां नै जगै नीं मिल सकै। पैला कनै सूती मां अर बच्चियों बिचे बेक घड़कणां री भाषा हुती। लौरी साथै थापी री भाषा रो अेक रंग हुतो। दादा-दादी, मां-बाप, बुआ-मासी, ताऊ जी कई रिस्ता हुता। अंग्रेजीयत अर अेकळ परिवार में अबै कीं नी। ताड़ना रौ जिम्मो लियौ है कान्वेंट स्कूल। इंग्लिष मिड़ियम रा स्कूल। जका बरसाती कुकुरमता जैड़ी फसला ज्यूं कस्बा, गांवां तक उग ग्या है। मैनरस रै नांव सूं पीर रैया हैै बच्चा...पण संस्कृति ? कांई पैला स्कूंला मांय सस्कार नीं दिया जवता। इण स्कूंला माय साइंस तौ पढ़ाई जावै पण आपणौं मारल हर तरै सूं डाउन राख्यौ जावै। स्ककूलां मायं मातृभाषा बोलण पर जुर्मानों हुवै है। गंवार अर सभ्य भाषा रो भाव उभर रैयौ हैं। गंवार भाषा गिणीजै क्यूं ? क्यूं नीं हुवै म्हां अंग्रेजी ने माथेै जौ चढ़ाय दी है। इण भाषा रै कारण बच्चा आपरै घरां अर रिस्तेदार बिचै अजनबी बण र रैय जावै। सुबै चिड़ियाघर में टाबरियां ने लेयर गई। म्हैं अेक बच्चा ने बांदरा कनै देखर पूछियौ ‘बेटा आपणी भाषा में मंकी अर डंकी ने कांई कैवे ? बो आपरी मां रौ मुंड़ो जोवण लागौ। मासी आपने कांई पतो म्हारा टाबरिया अंग्रेजी स्कूल में पढ़े है। इणां वासते तौ हिंदी रौ काळौ आखर भैंस बरोबर है‘ बा घणी गूमेज सूं बोली ‘म्हारा बच्चिया तौ अंग्रेजी में ई खाईंग, अंग्रेजी में ई पढ़िंग अर अंग्रेजी मांय ई रैविंग।‘ सुणर मांय रै मांय हंसी रोकती म्है कैयौ, थारा टाबर थनै अंग्रेजी खूब सिखाई है। जिंदगी री पैली पाठषाला तो घर हुवै अर मां पैली गुरू। यो कथन आज पलटी खा ग्यौ। मां-बाप‘ बर ‘मम्मी-डेडी‘ कांई दो भाषावां रा दो सबद संबोधन मात्र है ? कांई किणीं भी देस री भाषा ने आपणी भाष ने छोड़र ई अपणाणौं ई आपणी संस्कृति रैयगी है। म्हंै तो कैवूं क कोई भी संस्कृति आपरी भाषा रो अलग अस्तित्व राख सकै। मजै री बात है, अबै ओ हाल है क किण ने ई गुस्सौ आवै तो बो ई अंग्रेजी में बोलण ढूकेै, अंग्रेजी में गाळिया काढे भलई मतलब जाणै चाहे नीं जाणै। बाजार में अेड़ा भी कई निजर आवै है जकी अंग्रेजी में बोले, भलई उण रो अरथ बदळ ावै। अंट-संट बोलर लोंगां री हंसी रो कारण बण जावै। और तौ और बहुराष्ट्रीय कंपनीया अर पूंजीवाद रो विरोध करणीयां पाणी पी-पीयर हाका करणवाला, स्वदेसी रा नारा लगावण वाला, हिंदी ने ओढण-बिछावण वाला, हिंदी रो पक्ष लेवण वाला लोग भी अंग्रेजीयत री मानसिकता सूं ग्रस्त है। म्हां अग्रंेजी भासा रो विरोध नी करां। म्हां जाण हां कै अंग्रेजी में साइंस रो ज्ञान रो विस्तृत रूप में मिले हैं। इण वास्तै विद्यार्थिओंने अंगेजी सूं घणौ फायदो मिलो। अंग्रेजी में विज्ञान पढ़नो जरूरी है। पण आपरी संस्कृति नै कायम राखणौ ई जरूरी है। साक्षरता अर सांस्कृतिक विरासत ने विद्यार्थिओं तक पहुंचाण सू पूर्व उणांने उणां री मातृभाषा देनी होसी। राष्ट्रीय भावना सूं ओतप्रोत कीं लोग, उच्चाधिकारीं अर केंद्रिय शासन कानी सूं कई क्षेत्रां में हिंदी भासा रो प्रयोग लागू कारण हिंदी भाषा अंग्रेजी ने अंगेठौ बतावती प्रगति रै पथ माथै बढ़ रैयी है।
एक चोर रा सगला घरवाळा मर खूटग्या तौ उणनै वैराग ऊठग्यों। वौ एक साधू-मातरा रै पगां पड़ने कहयौ-संता, म्हारौ औ जलम तौ बिगड़ियौ जकौ बिगड़ियौ ई, अबै आगौतर नीं बिगड़ेै, इण खातर आपरै सरणै आयौ हूं। सारी ऊमर, चोरियां में काढ़ी, अबै ढळती उमर रांम रौ नांव लेवण चावूं। पण बिन गुरू बिना वौ ई लिरीजै कठै। म्हारा जैड़ा पापी माथै दया बिचारौ अर म्हनै तारौ। साधू मातमा उणनै चेलौ बन लियौ। मातमा रौ अड़खंजौ लाठौ हौ। रामुदंवार में कोई संन्यासी रैवता हा। घणी ई वित-मवेसी अर घणौ ई घीणौ-धापौ हो। रांमदुवार में केई चारियां, लोटा गिलास, कूंडा, केइ राच-पीच, केई ठांव-ठीकरा अर केई बरतन-बासणा हां। रामजी री किरपा सूं गिरस्ती रा सगळा थाट इण रामदुंवारा में हा। चोर रै तौ मोज बणी पण बणी। सैकडूं चोरिया करनै ई वौ इतौ आराम नीं पायौ। पछै चोरी करण में कांई सार, पण तौ ई रांमदुवारा में अठी-उठी हेर-फेर करियां बिना उणनै नेहचै नीं व्हैतौ। केई बरसा रीं जूंनी लत ही। सारै-सास छूटै तो कीकर छूटै। वो आपरीं पुरांणी आदत पोखण सारू रांमदुवारा रा सगळा बरतन-बासणां री अठी-उठी हेरा-फेरी करतौ रेवणो। दूजा चेला ठोड़ री ठोड़ सगळी चीजां सावळ सुथराई सूं जमायनै धरता अर वौ जमायोड़ी चीजां ने अठी-उठी कर दैवतौ। सगळा चेला उणरी हेरा-फेरी सूं काठा काया व्हैगा। वै महंतजी नै चुगली करी तौ महंतजी उणनै बुलायनै समझायो-भाया, सगळी मूरतियां थारी घणी सिकायतां करै। थूं बिना कांम कारग चालतौ ई वांरी जमायोड़ी चीजा नै ठोड़ क्यूं छुड़ावै। रामदुवारा री सगळी मूरतियां थारी इण हेरा-फेरी सूं नाराज हैं। चोर महंतजी रै पगां हाथ लगायनै कहयौ-बाबजी, आप ई न्याव करौ के चोर, चोरी सूं गियौ जको तौ ठीक, पण हेरा-फेरी सूं ई गियौ। पुरांणी लत हैं, चोरी तौ छूटगी पण हेरा-फेरी नीं छूटै। मातमा उणनै समझायौ तो एकर मान गियौ। थोड़ा टैम वो हेरा-फेरी नीं करी। पण वो आपरी आदत नीं छोड़ सकियौ, रांमुदवारा रा मिनख मातमा नै घणी सिकायत करता पण मातमा मातमा उणनै बुलायनै समझावाता ही रैता। तामता जाणियौ के इणरी चैरी करण री आदत तो रांमदुवारा में रैहणै छूटी। लारै जाता वै हेरा-फेरी री लत आगोतर माथे छूट गी।
एक सेठ छकड़ौ जोतनै आपरै सासरै जावतौ हौ। साथै सेठाणी अर उणरौ बैटौ भी हौ। बैटा री उमर सतरा-अठारा बरस हीं। सूरज मथारै आयौड़ौ हौ अर वै हौळौ-हौळै बळदां नै खड़ता हा। मारग में एक जाड़ी घेर-घुमेर बोरड़ी रै टेटे वे छकड़ौ ढाबियौ। सेठाणी कहयौ-धमैक बिसाई खायनै दौफरी करलां। बोरड़ी री छींया नांमी है। वौ कटोरदांन खालनै रोटिया खावण ढूंका के वांनै दोय घोड़िया सरणाट साम्हीं आवती दीसी। धोड़िया रा असवार ई बोरड़ी हैटे छकड़ौ देख्यौ तौ लगांम खांची। सेठां ने कहयो-कोई म्हारीं पूछै तौ बताजौ मती। जै बताय दियौ तौ थें थारी जाणौ। आ कैयनै वै दोनूं चोर भरणाटै डावै पसवाड़े उजड़ टळग्या। थोड़ी ताळ पछे जीम-जूठने सेठ पाछो छकड़ौ। जोतियौ। दूजा दौय असवार वळै आवता दीखिया। ै कदास घोड़िया रा धणी हा। चोरां नें पकड़गण सारू वारै लारै वार चढ़या हा। घोड़िया रै खोजा-खोजां वै उणी मारग लारै उड़ता आया हा। पण तौ ई खासी छेती रैगीं। सिरदार छकड़ा रै पाखती आयनै घोड़िया ढाबा। आखता पड़नै पूछियौ-सेठां, अठीकर दोय घोड़िया जाती देखी कांई। सेठ रै जवाब दैवे उण सूं पैला उणरौ बीच में बौल्यौ-हां देखी। सिरदार वळै पूछयौं-उणरौ रंग कैड़ौ हौ ?वो दीखण में कैड़ी हीं ? चोरां रौ तौ ना दियौड़ौ हौ इण उपरांत सेठ सौच्यौ के घोड़िया हाथ आया पछै गवाईयां में फिरणौ पड़ैला। कुण मारग चालता घांदा में पड़ै। वै बैठा नै इसारौ करियौ तौ ई वौ समझियौं कोनीं। कोड़यौ होयनै साची बात कैवण लागौ-रांत रंग री फूठरी घोड़िया हीं। तद सेठ बळदा री रासां तणकार नै कह्यौ-चेत, चेत। अबे जावतौ वौ सांनी में समझग्यौ। भोळौ गणनै हाथ उंचै करियौ। खुंणी रे आंगळियां लगायनै कहयौ-फैर घोड़िया रै इता लांबा-लाबंबा सींगड़ाहा। सिरदार नै ई उणरी बात सुणनै हंसी छूटगी। कह्यौ-बावळा, घोड़िया रै ई कदै ई सींगडा हंसता थका कहयौ-बांणिया रा बैटा, घोड़िया मंे काई समझै। औ तो टाबर है। आपनै यू झूठ ई बताय दियौ। म्हां तौ घोड़िया देखी नीं कोई घोड़ा देखिया। आ कैयनै सेठ ई आपरै मारग बळ खड़िया अर सिरदार ई आपरी घोड़िया चोरां रै लारै बगडाई।
एक मिनख रै तोटौ आयग्यौ। परभात रौ आथण अर आथण रौ परभात पकड़णौ दौरौ व्हैगा। आपरी ऊपर में वौ चिलम ई मांगनै नीं पीवी तौ किणी सूं रिपिया कीक मांगै। पण दिन धकावणा मुळगा ई दूभर व्हैगा तौ काठौ कायो हायनै वो एक बांणिया री पेढ़ी चढ़यौ। बांणियौ उणनै ओळखतौ हौ। आव-आदर रै सागै बतळायौ-आवौ सिरदारा, आज अठीनै कीकरण किरपा करी ? मिनख सूं नीं तौबोलीजियौ अर नीं उण सूं बांणिया रै साम्हीं ई भाळीजियौ। वौ तौ नीची धूण करनै बौलो-बौली पैढ़ी माथै बैठग्यौ। सेठ मा‘ टौ बड़ौ समझणौ हौ। तुरण उणरै मन री बात लखग्यौ बौल्यौ-अर पौ आपरै घर री पेढी है। म्हारां सूं आप संकोच राखौ, बड़ी अचंभा री बात है। मिनख सूं ई कांम पड़िया करै। फरमावौ किता रिपिया री जरूरत है ? मिनख गळगळा कंठ सू जवाब दियौ, सेठां, रिपिया तौ म्हारे हजार चाहीजै। पण करो चाहीजण सूं ई कांइ व्है, म्हारै कनै गैणौ-गांठौ की कोनी। अर जीम म्है मारियं इ किणी रै नांव नी मंडावू। बांणियो बीच में बौल्यौ-कुण बुरीगार आप सूं गैणौ-गांठौ मांगियो। आपरी मूंछ रौ फगत एक बाळ म्हनै तौड़नै दे दिरावौ, मिनख आपरा धूजता हाथ सूं मूंछ रौ एक बाळ पकड़ियौ। तणकरौ देयनै तो बाळ तौ तोड लियौ पण बांणिया नै बाळ झिलावतां उणरी आंख्या जळजळी रहेगी। मिनख रै पाखती ई एक राईको बैठौ हो। वौ ई सेठा कनैरिपिया लेवण सारू आयो हौ। मूंछया रा बाळ साटै रिपिया मिळला देख्या तौ वौ तुरंत आपरी मूंछ रा लट्टी बांणिया साम्हीं करनै कहयौ-लौ सेठां, अंक री ठौड़ औ पचास बाळ। म्हनै ई आरै साटै पांच सौ रिपिया दे दौ। बाणियौ खिखरा करतौ बोल्यौ-बावळा, एड़ी जट तौ टकै घड़ी बिके। औ तौ मूंछ-मूंछ रौ फरक है। अळगी बारै फंेक, क्यूं हाट में फूस बिखरे। इणरी मंूछ रौ एक बाल हीं म्हारै करजा चुकावण सारू घणै हो, ओ उतरी रात सावैला नीं जठा तक वौ पेढ़ी माथै सूं बाल नीं लै जावै। राईका नै सगली बात समझ आयगी, वौ बोलो-बौलो आपरौ कंदौरो काढ़ने पांच सौ रिपिया लिया। मिनख नै मूंछ रे एक बाल रे सागै हजार रूपिया मिलगिया।