कवी बद्रिदान जी गाडण (हरमाड़ा ) ने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भैंरू सिंह जी को रिझाने के लिए प्रशंसा में दो गीत लिख भेजे , किन्तु उस पर जब कोई प्रतिक्रिया नही हुई तो कवी ने उलाहना के दोहे भी बना भेजे :
मायड़ भाषा मोह ,उकसयो मोनू इसो !
तो मैं कियो मतोह , तोने बिडदावण तणो !
मैं जाणी मन मांय , बिडदायां हिमत बंधे !
पण थारी न पाय , दिसी भैंरू देवरा !
आगै ख्यात अनेक , बीडदायां सिर बोलिया !
इण कलयुग में एक , भणक न लागी भैरवा !
लोही थारो लाल ,मिलतो टोडरमाल सो !
कलजुग तणी कुचाल , भेळ दियो मळ भैरजी !! ४
पख पोखर रै पाण , एक न सबद उचारियो !
अदत बिलोपी आण , मायड भाखा री मुदै !
तारीफां थारीह , बे बे गीत बणाविया !
मत गुमी म्हारीह , पातर नह पिछाणीयो !
सेखा ! थारी साख , बधाई मैं बावलै !
रै नह सकियो राख , तूं भैरूं देवा तणा !
बंस बिगाडू व्यास , चाटुकार मोनू कवै !
उर बिच होय उदास , जहर तिको ही जरावियो !
बात पोस बिजोह , खिज्यो मो माथै खरो !
रै ! तो पर रिझ्योह , भोळप म्हारी भैरजी !
मैं बिन्हू गीतां मांय , कबाई खाई किना !
निपट ताहरै नांय ,आ पूँजी माण्डी अजे !
सुख बणतां सिन्धिह ,कुळ गोरव अनुभव करै !
बंस तण बिन्दिह , भली लगाई भैरजी !! ......!! शैषकरण धनायका
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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