छायळ फूल विछाय, वीसम तो वरजांगदे।
गैमर गोरी राय, तिण आंमास अड़ाविया।।
इसड़ै सै अहिनांण, चहुवांणो चौथे चलण।
डखडखती दीवांण, सुजड़ी आयो सोभड़ो।।
काला काळ कलास, सरस पलासां सोभड़ो।
वीकम सीहां वास, मांहि मसीतां मांडजै।।
हीमाळाउत हीज, सुजड़ी साही सोभड़े।
ढ़ील पहां रिमहां घड़ी, खखळ-बखळ की खीज।।
सोभड़ा सूअर सीत, दूछर ध्यावै ज्यां दिसी।
भीत हुवा भड़ भड़भड़ै, रोद्रित कर गज रीत।।
चोळ वदन चहुवांण, मिलक अढ़ारे मारिया।
सुजड़ी आयो सोभड़ो, डखडखती दीवांण।।
वणवीरोत वखांण, हीमाळावत मन हुवा।
त्रिजड़ी काढ़ेवा तणी, चलण दियै चहुवांण।।
सोभड़ै कियो सुगाळ, मुंहगौ एकण ताळ में।
खेतल वाहण खडख़ड़ै, चुडख़ै चामरियाळ।।
लोद्रां चीलू आंध, भागी सोह कोई भणै।
सोभ्रमड़ा सरग सात मै, बाबा तोरण बांध।।
राजस्थान रंगीलो प्रदेस। राजस्थान नै परम्परागत रूप सूं रंगां रै प्रति अणूंतो लगाव। सगळी दुनिया रो मन मोवै राजस्थान रा ऐ रंग। बरसां पैली नेहरूजी रै बगत नागौर में पंचायत राज रो पैलड़ो टणको मेळो लाग्यो। 2 अक्टूबर, 1959 रो दिन हो। राजस्थान रा सगळा सिरैपंच भेळा हुया। नेहरूजी मंच माथै पधार्या तो निजरां साम्हीं रंग-बिरंगा साफां रो समंदर लहरावतो देख'र मगन हुयग्या। रंगां री आ छटा देख वां री आंख्यां तिरपत हुयगी। मन सतरंगी छटा में डूबग्यो। रंगां रै इण समंदर में डूबता-उतरता गदगद वाणी में बोल्या- ''राजस्थान वासियां! थै म्हारी एक बात मानज्यो, आ म्हारै अंतस री अरदास है। वगत रा बहाव में आय'र रंगां री इण अनूठी छटा नै मत छोड़ज्यो। राजस्थानी जनजीवण री आ एक अमर औळखांण है। इण धरती री आ आपरी न्यारी पिछाण है। इण वास्तै राजस्थान रो ओ रंगीलो स्वरूप कायम रैवणो चाइजै।''
राजस्थानी जनजीवण रा सांस्कृतिक पख नै उजागर करता पंडतजी रा ऐ बोल घणा महताऊ है। 'रंग' राजस्थानी लोक-संस्कृति री एक खासियत है। अठै कोई बिड़दावै, स्याबासी दिरीजै तो उणनै 'रंग देवणो' कहीजै- 'घणा रंग है थनै अर थारा माईतां नै कै थे इस्यो सुगणो काम कर्यो।' अमल लेवती-देवती वगत ई जिको 'रंग' दिरीजै उणमें सगळा सतपुरुषां नै बिड़दाइजै।
राजस्थान री धरती माथै ठौड़-ठौड़ मेळा भरीजै। आप कोई मेळै में पधार जावो- आपनै रंगां रो समंदर लहरावतो निगै आसी। लुगायां रो रंग-बिरंगो परिधान आपरो मन मोह लेसी। खासकर विदेसी सैलाणियां नै ओ दरसाव घणो ई चोखो लागै। इण रंगां री छटा नै वै आपरै कैमरां में कैद करनै जीवण लग अंवेर नै राखै।
राजस्थानी पैरवास कुड़ती-कांचळी अर लहंगो-ओढणी संसार में आपरी न्यारी मठोठ राखै। लैरियो, चूंनड़ी, धनक अर पोमचो आपरी सतरंगी छटा बिखेरै। ओ सगळो रंगां रो प्रताप।
इणीज भांत राजस्थानी होळी एक रंगीलो महोच्छब। इण मौकै मानखै रो तन अर मन दोन्यूं रंगीज जावै। उड़तोड़ी गुलाल अर छितरता रंग एक मनमोवणो वातावरण पैदा करै। रंगां रो जिको मेळ होळी रै दिनां राजस्थान में देखण नै मिलै, संसार में दूजी ठौड़ स्यात ई निजरां आवै।
मानवीय दुरबळतावां रै कारण साल भर में पैदा हुयोड़ा टंटा-झगड़ा, मन-मुटाव अर ईर्ष्या-द्वेष सगळा इण रंगीलै वातावरण में धुप नै साफ होय जावै, मन रो मैल मिट जावै।
इण रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी रै मंगळ मौकै आपां नै आ बात चेतै राखणी कै वगत रै बहाव में आय'र भलां ई सो कीं छूट जावै पण आपणी रंग-बिरंगी संस्कृति री अनूठी छटा बणायां राखणी।
कंवल उणियार रो लिख्योड़ो ओ दूहो बांचो सा!
चिपग्या कंचन देह रै, कपड़ा रंग में भीज।
सदा सुरंगी कामणी, खिली और, रंगीज॥
संकलन अर प्रस्तुति
आपणी भाषा आपणी बात
जन्मे सूत सादल जिसों,आहंसी तपवान!!१!!
"धर गुज्जर वालो धणी ,सोलंकी सिधराव !
बणियो बनदो बनथली,कहिया सुजस कहाव !!
देग तेग भड़ डोडिया ,बांका जगत विख्यात !
ए अनमी अपनाविया,राव धणी गुजरात !!२!!
भारत नै आजाद हुयां 57 बरस होग्या, पण राजस्थानी भाषा नै, जिकी 15 करोड़ (प्रवासी 7 करोड़) लोगां री भाषा है, भारत रै संविधान में मान्यता नहीं देणो - संविधान री घोर अवमानना है। जनतांत्रिक संविधान में संविधान री जड़ पर कुठाराघात कर्यो गयो है, आ घणी चिन्ता री बात है। राजस्थान विधानसभा में राजस्थानी नै सर्वसम्मत संकल्प सैं पारित कर केन्द्रीय सरकार नै भेज्यो, पण बीं पर तानाशाही राजनेता विचार तक कोनी कर्यो, आ राजस्थानियां सारू अपमानजनक बात है। अब समै आग्यो है कै सब राजस्थानी एकजुट होय जन-जागरण वास्तै अभियान सरू करै। ईं अभियान रो पैलो चरण होसी राजस्थानी रै लियै जन-जागरण - अर ईं काम रै लियै राजस्थान रै हर जिलै में एक समिति गठित करी जावै। इण रा कार्यकर्ता तहसीलां अर पंचायत समितियां ताईं लोगां नै राजस्थानी भाषा री महत्ता री जाणकारी देवै अर उणां नै ईं मुद्दै पर सावचेत करै। जन-जागरण नै प्रभावशाली बणाणै सारू कार्यकर्ता पैदल यात्रा करै अर ढाणी-ढाणी ताईं राजस्थानी रो संदेश पुगावै। ईं जन-जागरण रै बारै में गठित समिति 'राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी' नै सही रपट भेजै। ईं रै बाद में दूसरो चरण जन-आंदोलन होसी। ईं आंदोलन में रेल रोको, स्कूल-कालेजां में हड़ताल, वकीलां री ओर सूं अदालतां रो बहिस्कार अर हरेक कस्बै-शहर में राजस्थानी भाषा नै मान्यता नहीं देणै रै विरोध में काळा झंडां रो जलूस निकळै। ईं सारै कार्यक्रम नै पूरो कर कै कम सैं कम 20 हजार आदमी नई दिल्ली पूंचै। जलूस निकाळ कै महात्मा गांधी री समाधि पर धरणो देवै अर अनशन करै। राजस्थान रा जित्ता भी सांसद है, बांकै घरां पर धरणो देवै अर उण सूं इस्तीफै री मांग करै। सागै-सागै संसद में भी ईं मान्यता सारू राजनैतिक पार्टियां सूं प्रस्ताव रखावै। राजस्थान रा विधायकां नै आप रै क्षेत्र में भाषा री अलख जगाणी चायै।
अमेरिका रा भाषा-विद्वान (अमेरीकन कांग्रेस ऑफ लाईब्रेरीज) दुनियां री 13 समृद्ध भाषावां में राजस्थानी भाषा नै भी एक समर्थ भाषा मानी है। राजस्थानी भाषा री उप-शाखावां में हरियाणवी, मालवी, मेवाती, मारवाड़ी, हाड़ोती, ढूँढाड़ी, बागड़ी अर पश्चिम राजस्थान री गुर्जर भाषा मुख्य है। राजस्थान में करीब 72 बोलियां बोली जावै है। कैबत है 'तीन कोस पर पाणी बदळै, 12 कोस पर बोली।' जकी भाषा री जितणी बोलियां अर उप-शाखावां हुवै, बा उतणी ही समर्थ भाषा मानीजै। नेपाल अलग राष्ट्र होतां हुयां भी बठै री नेपाली भाषा में राजस्थानी रा मोकळा सबद है। कारण साफ है कै बठै रो राजवंश राजस्थान सूं जुड़ेड़ो है।
राजस्थान मरुधर देस है। बीं री परम्परा अर संस्कृति भारत रै अन्य प्रदेशां सूं बिलकुल अलग है। बठै रा लोकदेवता, लोकगीत, लोक-गाथावां, खान-पान-पहराण री आपरी अलग विशेषता है। राजस्थान रा पसु-पाखी, बठै रा रूंख सब अलग हैं। इण री सही अभिव्यक्ति राजस्थानी में ही सम्भव है। बठै री प्रेम-कथावां दूजै साहित्य में कोनी। भारत रै इतिहास में राजस्थान आप री न्यारी पिछाण राखै है। बठै सूं राष्ट्रीय स्वतंत्रता रा सब क्रांतिकारी प्रेरणा ली है।
राजस्थानी भाषा नै मान्यता मिले बिना बठै री महान परम्परावां नै, अनूठी संस्कृति नै टाबर किंया जाणसी?
टाबरियां नै किंया हुवैलो, निज धरती रो ज्ञान।
राख्यां चावो जड़ां जीवती, द्यो मायड़ नै मान॥
-कन्हैया लाल सेठिया
(राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन रा पर्याय-पुरुष श्री सेठिया कोलकाता सूं 21 दिसम्बर 2004 नै अखिल भारतीय राजस्थानी समारोह रासंयोजक श्री रतन शाह रै नांव लिखियोड़ी पाती रो एक अंश।)
-प्रस्तुति- सत्यनारायण सोनी
बोलैनीं हेमाणी.....
जिण हाथां सूं
थें आ रेत रची है,
वां हाथां ई
म्हारै ऐड़ै उळझ्योड़ै उजाड़ में
कीं तो बीज देंवती!
थकी न थाकै
मांडै आखर,
ढाय-ढायती ई उगटावै
नूंवा अबोट,
कद सूं म्हारो
साव उघाड़ो औ तन
ईं माथै थूं
अ आ ई तो रेख देवती!
सांभ्या अतरा साज,
बिना साजिंदां
रागोळ्यां रंभावै,
वै गूंजां-अनुगूंजां
सूत्योड़ै अंतस नै जा झणकारै
सातूं नीं तो
एक सुरो
एकतारो ई तो थमा देंवती!
जिकै झरोखै
जा-जा झांकूं
दीखै सांप्रत नीलक
पण चारूं दिस
झलमल-झलमल
एकै सागै सात-सात रंग
इकरंगी कूंची ई
म्हारै मन तो फेर देंवती!
जिंयां घड़यो थेंघड़ीज्यो,
नीं आयो रच-रचणो
पण बूझण जोगो तो
राख्यो ई थें
भलै ई मत टीप
ओळियो म्हारो,
रै अणबोली
पण म्हारी रचणारी!
सैन-सैन में
इतरो ई समझादै-
कुण सै अणदीठै री बणी मारफत
राच्योड़ो राखै थूं
म्हारो जग ऐड़ो? [‘जिण हाथां आ रेत रचीजै’ से ]
जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात ।
बध बध देस्यू ओळमा भर भर रोस्यूँ बाँथ ॥
पैली तारिख लागताँ जागै घर ओ भाग ।
मनियाडर री बाट मँ बाप उडावै काग ॥
फागण राच्यो फोगला रागाँ रची धमाल ।
चाल सपन तूँ गाँव री गळीयाँ मँ ले चाल ॥
घर, गळियारा, सायना, सेजाँ सुख री छाँव् ।
दो रोट्या रै कारणै पेट छुडावै गाँव ॥
चैत चुरावै चित्त नै चित्त आयो चित्तचोर ।
गौर बणाती गौरडी खुद बणगी गणगौर ॥
चपडासी है सा’ब रो बूढो ठेरो बाप ।
बडै घराणै भोगरयो गेल जनम रा पाप॥
बेली तरसै गांव मँ मन मँ तरसै हेत ।
घिर घिर तरसै एकली सेजाँ मँ परणेत ॥
भाँत भाँत री बात है बात बात दुभाँत ।
परदेशाँ रा लोगडा ज्यूँ हाथी रा दांत ॥
गळै मशीनाँ मँ सदा गांवा री सै मौज ।
परदेसाँ मै गांगलो घर रो राजा भोज ॥
बैठ भलाईँ डागळै मत कर कागा कांव ।
चित चैते अर नैण मँ गूमण लागै गांव ।।
बडा बडेरा कैंवता पंडित और पिरोत।
बडै भाग और पुन्न सूँ मिलै गांव री मौत ।|
लोग चौकसी राखता खुद बांका सिरदार ।
बांकडला परदेस मँ बणग्या चौकीदार ॥
मरती बेळ्या आदमी रटै राम र्रो नांव ।
म्हारी सांसा साथ ही चित्त सू जासी गांव ॥
मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज ।
मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥
बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक ।
गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख ॥
दादोसा पुचकारता दादा करता लाड ।
पीसाँ खातर आपजी दियो दिसावर काढ ।।
मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप ।
जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप ॥
जद सूँ परदेसी हुयो भूल्यो सगळा काम ।
गांवा रो हंस बोलणौ कीया भूलू राम ॥
गरजै बरसै गांव मै चौमासै रो मेह ।
सेजा बरसै सायनी परदेसी रो नेह ॥
कुण चुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात ।
रात हमेशा आवती रात नै आयी रात ॥
आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत ।
मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत ॥
दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम ।
च्यार पहर री रात आ कीयाँ ढळसी राम ॥
सांपा री गत जी उठी पुरवाई मँ याद ।
प्रीत पुराणै दरद रै घांवा पडी मवाद ॥
नैण बिछायाँ मारगाँ मन रा खोल कपाट ।
चढ चौबारै सायनी जोती हुसी बाट ॥
प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ ।
दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ ॥
पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम ।
उपर लिख दे पीव रो नीचै म्हारो नांम ॥
दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम ।
इण कातिक तो आ घराँ ओ ! परदेसी राम ॥
जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव ।
म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव ॥
जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक ।
म्हारै घर रै आंगणै कदै न देख झांक ॥
मैडी उभी कामणी कामणगारो फाग ।
उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥
बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर ।
जब अम्बर मँ बादळी घिरता लोराँ लोर ॥
बाबल रै घर खेलती दरद न जाण्यो कोय ।
साजन थारै आंगणै उमर बिताई रोय ॥
बाबल सूंपी गाय ज्यूँ परदेसी रै लार ।
मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार ॥
नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास ।
सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास ॥
सुस्ताले मन पावणा गांव प्रीत री पाळ ।
मिनख पणै रै नांव पर सहर सूगली गाळ ॥
सहर डूंगरी दूर री दीखै घणी सरूप ।
सहर बस्याँ बेरो पडै किण रो कैडो रूप ॥
खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम ||
भगीरथ सिंह भाग्य
कीडी नगरो सहर है मोटर बंगला कार ।
जठै जमारो बेच कै मिनख करै रूजगार ॥
अजब रीत परदेस री एक सांच सौ झूँठ ।
हँस बतळावै सामनै घात करै पर पूठ ॥
खेत खळा अर रूंखडा बै धोरा बै ऊंट ।
बाँ खातर परदेस के तज देवूँ बैकूँट ॥
देह मशीना मै गळै आयो मौसम जेठ ।
बिरथा खोयी जूण म्हे परदेसा मँ बैठ ।।
ऊमस महीना जेठ रो बो पीपळ रो गांव ।
संगळियाँ संग खेलता चोपङ ठंडी छाव ॥
गाता गीत न गा सक्या करता करया न कार ।
जीतै जी ना जी सक्या मरिया पडसी पार ॥
ठीडै ठाकर ठेस रा ठीडै ही ठुकरेस ।
बिना ठौड अर ठाईचै क्यूँ भटकै परदेस ॥
समरथ जाणु लेखणी सांचो जाणू रोग ।
गावैला जद चाव सूँ दरद दिसावर लोग ।।
सूना सा दिन रात है सूनी सूनी सांझ ।
बंस बध्यो है पीर रो खुशिया रै गी बांझ ।।
हिरण्याँ हर ले नीन्द नै किरत्याँ कैदे बात ।
तारा गिणता काटदे नित परदेसी रात ॥
रिमझिम बरसै भादवो झरणा री झणकार ।
परदेसी रै आन्गणै रूत लागी बेकार ॥
साखीणो संसार है कद तक राखा साख ।
साख राखताँ गांव मँ मिटगी खुद री साख ॥
तन री मौज मजूर हा मन री मौज फकीर ।
दोनूँ बाताँ रो कठै परदेसाँ मँ सीर ॥
ऊंचा ऊंचा माळिया ऊची ऊंची छांव ।
महला सूँ चोखो सदा झूंपडियाँ रो गांव ॥
बाट जोंवता जोंवता मन हुग्यो बैसाख ।
छोड प्रीत री आस नै प्रीत रमाली राख ॥
जद सूँ छोड्यो गांव नै हिवडै पडी कुबाण ।
गीत प्रीत री याद मँ आवै नित मौकाण ॥
प्रीत आपरी सायनी होगी म्हारै गैल ।
भारी पडज्या गांव नै जिया कंगलौ छैल॥
प्रीत करी नादान सूँ हुयो घणो नुकसान ।
आप डूबतो पांडियो ले डूब्यो जुजमान ॥
हेत कामयो देश मँ परदेसा मँ दाम ।
किण री पूजा मै करू गूगो बडो क राम ॥
बाबो मरगो काळ मै करग्यो बारा बाट ।
घर मँ टाबर मौकळा कै करजै रो ठाठ ॥
मारै आह गरीब री करदे मटिया मेट ।
पण कंजूसी सेठ रो रति ना सूकै पेट ॥
किण नै देवाँ ओळमाँ किण नै कैँवा बात ।
टाबरियाँ रै पेट पर राम मार दी लात ॥
भगीरथ सिंह भाग्य
सूका सूका खेतडा पण नैणा मै बाढ ।
घर मँ कोनी बाजरी ऊपर सूँ दो साढ ॥
जद सूँ पाकी बाजरी काचर मोठ समेत ।
दिन भर नापै चाव सूँ पटवारी जी खेत ॥
फिर फिर आवै बादळी घिर घिर आवै मेह ।
सर सर करती पून मँ थर थर कांपै देह ॥
होगी सोळा साल री बेटी करै बणाव ।
कद निपजैली टीबडी कद मांडूला ब्याव ॥
टूटी फूटी झूँपडी बरसै गरजै गाज ।
इण चौमासै रामजी दोराँ रहसी लाज ॥
टाबर टीकर मोकळाँ करजै री भरमार ।
राम रूखाळी राखजै थाँ सरणै घरबार ॥
निरधनियाँ नै धन मिल्यो रोजणख्याँ नै राग ।
राम बता कद जागसी परदेसी रा भाग ॥
उगतो पिणघट ऊपराँ सुणतो मिठी बात ।
गळी गुवाडी घूमतो चान्दो सारी रात ॥
ना पिणघट ना बावडी ना कोयल ना छाँव ।
तो भी चोखो सहर सूँ म्हारो आधो गांव ॥
सांझ ढळ्याँ नित जांवता देखै सारो गांव ।
पिरमा थारी लाडली पटवारी रै ठांव ॥
पैली उठती गौरडी पाछै उठती भोर ।
झांझर कै ही नीरती सगळा डांगर ढोर ॥
छैल सहर सूँ बावडै खरचै धोबा धोब ।
पडै गांव मै रात दिन पटवारी सा रोब ॥
जद मन तरस्यो गांव नै जद जद हुयो अधीर ।
दूहा रै मिस मांडदी परदेसी री पीर ॥
प्रीत आपरी अचपळी घणी करै कुचमाद ।
सुपना मै सामी रवै जाग्या आवै याद ॥
पाती लिख रियो गांव नै अपरंच ओ समचार ।
दुख पावुँ परदेस मँ जीवूँ हूँ मन मार ॥
राग रंग नी आवडै कींकर उपजै तान ।
घर मै कोनी बाजरी अर टूट्योडी छान ॥
घर दे घर रूजगार दे घर घर री दे साख ।
ना देवै तो सांवरा जीवण पाछो राख ॥
बिन हरियाळी रूंखडा घरघूल्या सा ठांव ।
’राही’ दीखै दूर सूँ थारो आधो गांव ॥
लेग्या तो हा गांव सूँ कंचन देही राज ।
पाछी ल्याया सहर सूँ खांसी कब्जी खाज ॥
गाय चराती छोरडयाँ जोबन सूँ अणजाण ।
देख ओपरा जा लूकै कर जांटी री आण ।।
जोध जुवानी बेलड्याँ मिलसी करयाँ बणाव ।
आखडजै मत पावणा पगडंड्या रै गांव ॥
के तडपासी बादळी के कोयल री कूक ।
पैली ही सूँ काळजो हुयो पड्यो दो टूक ॥
अजब पीर परदेस री म मर जीवै जीव ।
घर मै तरसै गोरडी परदेसाँ मै पीव ।।
ना आंचळ ना घूंघटो ना हीवडै मै लाज ।
घिरसत पाळै गोरडी रोटी पोवै राज ॥
घाटै रो घर दे दिये दुख दीजै अणचींत ।
मतना दीजे सांवरा परदेसी री प्रीत ॥
धान महाजन रै घराँ ढोर बिक्या बे दाम ।
करज पुराणो बाप रो कीयाँ चुकै राम ॥
बेटो तो परदेस मै घर बूढा मा बाप ।
दोनो पीढी दो जघाँ दुख भोगै चुपचाप ॥
ठाला बिन रूजगार कै ताना देता लोग ।
भरी न अब तक गांव सूँ मनस्या बळण जोग ॥
जद जासी परदेस तूँ हुसी जद बरबाद ।
दरद दिसावर ई कडया रोज करैलो याद ॥
कितरा ही दुहा लिखूँ अकथ रहीज्या भाव ।
परदेसी रो दरद तो है गूंगै रो भाव ॥
सुख को कनको उड़तो कीया काण राख दी काणै में |
खोयो ऊँट घडै मै ढूडै कसर नहीं है स्याणै में ||
भूल चूक सब लेणी देणी ठग विद्या व्यापार करयो |
एक काठ की हांडी पर ही दळियो सौ बर त्यार करयो ||
बस पङता तो एक न छोड्यो च्यारू मेर सिवाणै मै |
खोयो ऊँट घडै में ढूँढे कसर नहीं है स्याणै मै
डाकण बेटा दे या ले , आ भी बात बताणी के |
तेल बड़ा सू पैली पीज्या बां की कथा कहाणी के ||
भोळा पंडित के ले ले भागोत बांच कर थाणै मे |
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |
जका चालता बेटा बांटै ,बै नितकी प्रसिद्ध रैया |
बिगड़ी तो बस चेली बिगड़ी संत सिद्ध का सिद्ध रैया ||
नै भी सिद्ध रैया तो कुण सो कटगो नाक ठिकाणै मे ||
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |
बडै चाव सूँ नाम निकाल्यो , होगो घर हाळा भागी |
लगा नाम कै बट्टो खुद कै लखणा बणरयो निर भागी |
तूं उखडन सूँ नहीं आपक्यो थकग्यो गाँव जमाणै में |
खोयो ऊंट घडै मे ढूंढै क़सर नहीं है स्याणै में |
भासा राजस्थान री, रहियां राजस्थान।
राजस्थानी रै बिना, थोथो मान 'गुमान'॥
आढो दुरसौ अखौ, ठाढ़ा कवि टणकेल।
भासा बिना न पांगरै, साहित वाळी बेल॥
पीथल बीकाणै पुर्णा, जाणै सकल जिहान।
पातल नै पत्री पठा, गहर करायौ ग्यान॥
सबद बाण पीथल लगै, मन महाराणा मोद।
अकबर दल आयो अड़ण, हलदी घाट सीसोद॥
धर बांकी बांका अनड़, वांका नर अर नार।
इण धरती रा ऊपना, प्रिथमी रा सिंणगार॥
धन धरती धन ध्रंगड़ो, धन धन धणी धिणाप।
धन मारु धर धींगड़ा, जपै जगत ज्यां जाप॥
रचदे मेहंदी राचणी, नायण रण मुख नाह।
जीतां जंग बधावस्यां, ढहियां तन संग दाह॥
नरपुर लग निभवै नहीं, आज काल री प्रीत।
सुरपुर तक पाळी सखी, प्रेम तणी प्रतीत॥
मायड़ भासा मान सूं, प्रांत तणी पहिचांण।
भासा में ईज मिलैह, आण काण ऒळखांण॥
मायड़ भासा जाण बिण, गूंगो ग्यान 'गुमान'।
तीजा गवरा होळीका, हुवै प्रांत पहिचांन॥
भाइ बीज राखी बंधण, गीत भात अर बान।
बनौ विन्याक कामण्या, विण भासा न बखान॥
अ-अः
अकल बिना ऊंट उभाणा फिरैं ।
अक्खा रोहण बायरी, राखी सरबन न होय । पो ही मूल न होय तो, म्ही दूलन्ती जोय ।।
अगम् बुद्धी बाणियो पिच्छम् बुद्धी जाट । तुर्त बुद्धी तुरकड़ो, बामण सपनपाट ।।
अग्रे अग्रे ब्राह्मणा, नदी नाला बरजन्ते ।
अगस्त ऊगा, मेह पूगा ।
अटक्यो बोरो उधार दे ।
अठे किसा काचर खाय है
अदपढ़ी विद्या धुवै चिन्त्या धुवे सरीर
अनहोणी होणी नहीं, होणी होय सो होय
अभागियो टाबर त्युंहार नै रूसै ।
अम्बर कै थेगळी कोनी लागै ।
अम्मर को तारो हाथ सै कोनी टूटै ।
अम्मर पीळो में सीळो ।
अमरो तो मैं मरतो देख्यो, भाजत देख्यो सूरो । चोधर तो मैं खुसती देखी, लाछ बुहारी कूडो ।। आगै हूँ पाछो भलो, नांव भलो लैटूरो ।।। (देखें - नाम में क्या रखा है)
अय्याँ ही रांडा रोळा करसी अर अय्याँ ही पावणा जिमबो करसी ।
अरड़ावतां ऊँट लदै ।
अरजन जसा ही फरजन ।
अल्ला अल्ला खैर सल्ला ।
असलेखा बूठां, बैदां घरे बधावणा । अर्थ - असलेखा नक्षत्र में वर्षा हो तो बैद-हकीमों के घर बधाई बँटे, मतलब रोग बढ़ते हैं ।
असवार तो को थी ना पण ठाडां करदी - किस्सा यों है कि एक औरत को एक डाकू जबरदस्ती उठा कर ले जा रहा था. ऊँट तेजी से दोड़ रहा था. रास्ते में उस औरत का एक परिचित मिल गया. उसने पूछा, 'आरी तू ऐसी सवार कब से हो गयी जो ऊँट को इतने जोरों से भगा रही है ?' तब उसने उत्तर में ऊपर की कहावत कही जिसका अर्थ है कि मैं सवार तो नही थी, जबर्दस्तों ने मुझे सवार बना दिया ।
असाई म्हे असाई म्हारा सगा, बां कै टोपी न म्हारे झगा ।
असी रातां का अस्सा ही तड़का ।
असो भगवान्यू भोळो कोनी जको भूखो भैसां में जाय ।
अस्सी बरस पूरा हुया तो भी मन फेरां में रह्या ।
आंध्यां की माखी राम उडावै ।
आलकसण ने रोट्याँ रो साग ।
आठ फिरंगी नो गोरा लड़ें जाट के दो छोरा ।
आसोजां का पड्या तावडा जोगी बणग्या जाट ।
उधार दियोड़ो आवै घर लेखै, नींतर हर लेखै ।
ऊन'रै को जायेड़ो बिल ही खोदै ।
अछूकाळ कादा में पीवै ।
आदर खादर बाजे बाव , झूंपङ पङिया झोला खाय ।
आँख कान को च्यार आंगळ को फरक है ।
आंख गयी संसार गयो, कान गया हँकार गयो ।
आँख फड़कै दहणी, लात घमूका सहणी ।
आँख फड़कै बांई, के बीर मिलै के सांई ।
आँख फुड़ाई मूंड मुन्डायो, घर को फेरयो द्वार । दोन्यू बोई रै बूबना, आदेश न जुहार ।।
आँख मीच्यां अंधेरो होय ।
आंख्याँ देखी परसराम, कदे न झूठी होय ।
आंख्याँ में गीड पड़ै, नांव मिरगानैणी ।
आंख्याँ सै आन्धो, नांव नैनसुख ।
आंगल्याँ सूं नूं परै कोनी हुवे ।
आंधा की गफ्फी, बहरा को बटको । राम छुटावै तो छूटै नहीं सिर ही पटको ।।
आंधा सुसरा सैं क्यांकी लाज ।
आंधी आई ही कोनी, सूंसाट पैली ही माचगो ।
आंधी भैंस बरू में चरै ।
आई ही छाय ने, घर की धिराणी बन बैठी ।
आक को कीड़ो आक में, ढाक को कीड़ो ढाक में ।
उठो राणी, काढो बुहारी, आंगण आया, किरसन मुरारी।
उत्तम धरती मध्यम काया, उठो देव, जंगळ कूं आया।
उन्नाळै खाटु भळी सियाळे अजमेर। नागाणौ नितको भळो सावणं बिकानेर॥
ऊंट मिठाई इस्तरी, सोनो गहणो शाह। पांच चीज पिरथी सिरै, वाह बीकाणा वाह । अर्थ - काव्य पंक्तियां मरुधरा की ऐसी पांच विशिष्टताओं को उल्लेखित करती है जिनकी सराहना समूची दुनिया में हो रही है।
क-घ
क ख ग घ ड़, काको खोटा क्यों घडै ।
कपूत हूँ नपूत भलो ।
कमाऊड़ै नै घी, खाऊड़ै नै दुर छी! अर्थात - कमाने वाले का सर्वत्र सम्मान होता है और उड़ाने वाले को सभी अवज्ञा की नजर से देखते हैं।
कर रै बेटा फाटको, खड्यो पी दूध को बाटको ।
करम लिखा कंकर तो के करै शिव शंकर ।
करमहीण किसनियो, जान कठै सूं जाय । करमां लिखी खीचड़ी, घी कठै सूं खाय ।।
करमहीण खेती करे, के हळ भागे के बळद मरे ।
काणी के ब्याह में सौ टेड ।
काणी भाभी पाणी प्याई, कै लक्खण तो दूधआळा है।
काम का ना काज का ... ढाई मण अनाज का ।
काळी बहू अर जल्योड़ो दूध पीढ्याँ ताईं लजावै ।
काळी हांडी रै कनै बैठयाँ काळस न सरी काट तो लाग्यां सरै ।
काळो कै काळो न जलमे तो किल्ड काबरो जरुर जलमै ।
कौड़ी बिन कीमत नहीं सगा नॅ राखै साथ, हुवै जे नामों (रूपया) हाथ मैं बैरी बूझै बात।
खरी कमाई घणी कमाई ।
खाणै में दळिया, मिनखां में थळिया।
खेती करै नॅ बिणजी जाय, विद्या कै बल बैठ्यो खाय ।
खोखा म्हांने चोखा लागै, खेजड़लो ज्यूं खजूर। निंबोळी-अंबोळी सिरखी, रस देवै भरपूर’ अर्थ - इसमें खेजड़ी को खजूर से बेहतर और निंबोळी को आम से मीठी व रसीली मानने का लेख है.
खोखा व्है तो खावां, गीत व्है तो गावां। अर्थात जैसी परिस्थिति हो उसी के अनुसार चलना चाहिए।
खुपरी जाण खोपरा, बीज जाण हीरा, बीकाणो भंडार रा मीठा हुवै मतीरा । अर्थ - बीकानेरी मरुधरा की वनस्पतियों के राजा मतीरे की तुलना हीरे-जवाहरातों से की गई हैं।
गंगा रो गटोळियो, लोटो पाणी ढोळियो, धोया कान अर होया सिनान।
गंडक की पूंछ तो बांकी ही रहसी ।
गरज दीवानी गूजरी नूंत जिमावै खीर, गरज मिटी गूजरी नटी, छाछ नही रे बीर ।
गरजवान री अकल जाय, दरदवान री शक्कल जाय ।
गरज सरी अर वैद बैरी ।
गरीब री हाय, जड़ामूल सूं जाय ।
गादड़ै की मोत आवै जणा गांव कानी भागै।
गाँवहाला कूटै तो माईतां कनै जावै, माईत कूटै तो कठै जावै ।
गोदी मैं छोरो गळी मैं हेरै ।
घणी सुधी छिपकली चुग चुग जिनावर खाय ।
घणूं खाय ज्यों घणों मरै ।
घणों सयाणों कागलो दे गोबर में चांच ।
घर का टाबर काणा भी सोवणा ।
घर की खांड किरकिरी लागै, गुड चोरी को मीठो ।
घर की डाकन घर का नै ही खाय ।
घर को जोगी जोगणूं आन गाँव को सिद्ध ।
घर नै खोवाई साळो ।
घर बळतो कोनी दीखै, डूंगर बळतो दीखै
घायल गत घूमैह, रै भूमी मारवाड़ री। राळो रुं रुं मेह, साहित इमरत सूरमों॥
घी सुधारै खीचड़ी, और बड्डी बहू का नाम ।
घैरगडी सासू छोटी भू बडी ।
च-झ
च्यार चोर चौरासी बाणिया, बाणिया बापड़ा के करँ ।
च्यार पाव चून चौबारे रसोई
चढ्योड़ो जाट तूम्बो ई चबा जावै ।
चोरी जैड़ो रुजगार नीं, जे पड़ती व्है मार नीं ।
छड़ी पड़ै छमाछम, विद्या आवै धमाधम।
ज्यादा स्याणु कागलो गू मैं चांच दे ।
जाओ लाख रैवो साख, गई साख तो बची राख ।
जांन में कुण-कुण आया? कै बीन अर बीन रो भाई, खोड़ियो ऊंट अर कांणियो नाई।
जंगल जाट न छोड़िये,हाटां बीच किराड़। रांगड़ कदे न छोड़िये,ये हरदम करे बिगाड़।।
जमीन ऍर जोरु जोर की नहीं तो कोई और की।
जळ ऊँड़ा थळ उजळा नारि नवळे वेश। पुरुष पट्टाधर निपजे आई मरुधर देश॥ अर्थ - गहरे पानी और गहरी सोच वाले यहां के पटादर पुरुष सिर्फ इंसानों से ही नहीं मरुभूमि की उपज से भी प्यार करते हैँ.
जाट ओर जाट भाई॥
जांटी चढे जको सीरणी बाँट - अर्थ: जो समी के पेड़ पर चढ़ता है, वही खतरे के निवारण हेतू देवता का प्रसाद बोलता है ।
जाट करै ना दोस्ती, जाट करै ना प्यार जो साचा इंसान हो, वो-ए इसका यार । चुगलखोर और दुतेड़े दुश्मन इनके खास चाहे पायां पड़े रहो, कोन्यां आवैं रास
जाट पहाडा: एक जाट-जाट, दो जाट-मौज, तीन जाट-कंपनी, चार जाट-फौज
जाट की बेटी और काकोजी की सूं - अर्थ: छोटा भी जब ज्यादा नजाकत दिखाने लगता है तब प्रयोग किया जाता है ।
जाट जंवाई भाणजो, रेवारी सुनार । ऐता नहीं है आपणा, कर देखो उपकार ।।
जाट जंवाई भाणजा, रैबारी सुनार । कदे न होसी आपणा, कर देखो व्योहार ।।
जाट जठे ठाठ ।
जाट जडूलै मारिये, कागलिये ने आळै । मोठ बगर में पाडि़ये, चोदू हो सो बाळै - अर्थ:जाट जब तक वयस्क नहीं हो जाता, कौवा जब तक उड़ना नहीं सीख लेता तब तक ही ये वश में आते हैं । मोठों पर जब तक बगर आया रहता है तब तक ही उपाड़ना ठीक है ।
जाट कहे सुण जाटणी, इसी ना कदे होय । चाकी पीसे ठाकरां, भांडा मांजै जोय ।।
जाट कहे सुण जाटणी, इणी गाँव में रणों, ऊंट बिलाई लेगई हांजी हांजी कहणों ।
जाट की छोरी र' फलकै बिना दोरी ।
जाट को के जजमान, राबडी को के पकवान ।
जाट गंगाजी नहा आयो के ? कह, खुदाई कुण है ।
जाट जाट तेरो पेट बांको, कह, मैं ई मैं दो रोटी अलजा ल्यूंगो ।
जाट न जायो गुण करै, चणैं न मानी बाह, चन्नण बिड़ो कटायकी, अब क्यों रोव बराह ।
जाट बलवान जय भगवान ।
जाट डूबै धोळी धार, बानियों डूबै काळी धार ।
जाट मरा जब जानिये जब चालिसा होय ।
जाट रे जाट ! तेरे सिर पर खाट, कह, मियाँ रे मियाँ ! तेरे सिर पर कोल्हू, कह, तुक तो मिली ना, कह, बोझ्याँ तो मरैगा ।
जीभड़ल्यां इमरत बसै, जीभड़ल्यां विष होय। बोलण सूं ई ठा पड़ै, कागा-कोयल दोय।।
जीम्या जिनै जीमांणा ई पडे ।
जीमण अर झगड़ौ, पराये घरां आछो लागै ।
जीमाणों सोरो जीमाणो दोरौ ।
जीम्यां छोडै पांवणौ, मरयाँ छोडै ब्याज ।
जैं करी सरम, बैंका फूट्या करम ।
जो गुड़ सैं मरै बी'नै जहर की के जरुरत।
जाट और घोयरा तावडॆ मॆ ही निकला करे।
ट-ढ
टका दाई ले गी अर कून्डो फोड़गी ।
टकै की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी ।
टपकन लागी टापरी, भीजण लागी खाट ।
टको टूंसी एक न यार, तोरण मारण होग्यो त्यार ।
ठाकर री गोळी, गांवरी सिरमोळी ।
ठाकरण भागो किसाक ? कह, गैल की मार जाणिये ।
ठाडै को डोको डांग नै फाड़ै ।
ठाडो मारै अर रोवण भी कोन्या दे ।
ठाली ठुकराणी को पेई में हाथ जाय ।
ठाली बैठी डोकरी, घर में घाल्यो घोड़ो ।
ठालै बैठ्याँ सूँ बेगार भली ।
ठिकाणे ठाकुर पूजीजै ।
ठिकाणै सैं ई ठाकर बाजै ।
ठोकर खार हुन्स्यार होय ।
डाकण बेटा ले क दे ।
डाकणां के ब्यावां में नूतारां का गटका ।
डाकणां सै गाँव का नळा के छाना है ।
दिग्मरां के गाँव में धोबी को के काम ।
डूंगर चढ़तो पांगळो, सीस अणीतो भार ।
डूंगर बळती दिखै, पगां बळती कोनी दिखै ।
डूबतो सिंवाळां न हाथ घालै ।
डेड घड़ो'र डीडवाणू पाऊँ ।
ढक्योड़ो मत उघाड़ और भू घर तेरो ई है ।
ढबां खेती,ढबां न्याव ।
ढल्यो घोटी, हुयो माटी ।
ढेढ़ को मन ल्याह्वड़ै में ही ।
ढेढ़ नै सुरग में भी बेगार ।
ढेढ़ रे साथे धाप'र जीमो भांवै आंगळी भर कर चाखो ।
ढेढ़ रो पल्लो लगावो, भांवै बाथे पड़ो ।
ढेढ़ां की दुर्सीस सूं दाव थोड़ा ई मरै ।
ढेढणी और रावळै जा आई ।
ढोली गावतो अर टाबर रोवतो चोखो लागै ।
त-न
तंगी में कुण संगी ?
तरवार को घाव भरज्या बात को कोनी भरै ।
तवै की काची नै, सासरै की भाजी नै कठैई ठोड़ कोनी ।
तवै चढ़ै नै धाड़ खाय ।
ताता पाणी सैं कसी बाड़ बळै ।
तातो खावै छायाँ सोवै, बैंको बैद पिछोकड़ रोवै ।
ताळी लाग्यां ताळो खुलै ।
तावळो सो बावळो ।
तिरिया चरित न जाणे कोय, खसम मार के सत्ती होय ।
तीज त्युंहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर ।
तीजां पाछै तीजड़ी, होळी पाछै ढूंढ, फेरां पाछै चुनड़ी, मार खसम कै मूंड ।
तीतर कै मूंडै कुसळ है ।
तीतर पंखी बादळी, विधवा काजळ रेख । बा बरसे बा घर करै, ई में मीन न मेख ।।
तीन तेरा घर बिखरै ।
तीन बुलाया तेरा आया, भई राम की बाणी । राघो चेतन यूँ कहै, द्यो दाळ में पाणी ।।
तीन सुहाळी, तेरा थाळी । बांटण वाळी सतर जणी ।।
तीसरे सूखो आठवैं अकाळ - राजस्थान के लिए प्रयोग किया गया है ।
तुरकणी कै रान्ध्योड़ा में के कसर ।
तुरकणी रे कात्योडे में ही फिदकड़ो ।
तूं है देसी रूंखड़ो, परदेसी लोग, म्हांने अकबर तेड़िया तूं किम आयो फोग। अर्थ - दूर देस में अपनी भूमि के पौधे फोग को देखकर अपनापन जताना महज देस से दूरी का वियोग नहीं है अपितु अपनी हर उपज का सम्मान यहां के लोग बड़े सलीके से करते हैं।
दियो लियो आडो आवै ।
दूध पीती बिलाई गंडका कै मायं पड़गी ।
दूसरे की थाळी मँ घी ज्यादा दीखॅ।
दूसरे की थाळी में सदा हि ज्यादा लाडू दीखैं ।
धणी बिना गीत सूना तो सिरदार बिना फौज निकांमी।
धणी रो धन नीं देखणों, धणी रो मन देखणों ।
धरती करिया बिछावणा, अम्बर करिया गलेफ। पोढो राजा भरतरी, चोकी देवै अलेख।
धरती माता थूं बड़ी, थां सूं बड़ो न कोय। उठ संवारै पग धरां, बाळ न बांका होय।।
धन्ना जाट का हरिसों हेत, बिना बीज के निपजँ खेत।
नट विद्या आ जावै, जट विद्या कोनी आवै।
नानी फंड करै, दोहितो दंड भरै ।
नेपॅ की रुख खेड़ा'ई बतादें ।
प-म
पावणां सूं पीढ़ी कोनी चालै, जवायाँ सूं खेती कोनी चालै ।
पेड़ की जड धरती और लूगाई की जड़ रसोई ।
पूत का पग पालणें में ही दीख जा हीं ।
पत्थर का बाट - जत्ता भी तोलो, घाट-ही-घाट ।
पीसो हाथ को, भाई साथ को ही काम आवै ।
फूटेड़ो ढोल अर कूटेड़ो ढोली चीं नीं करै ।
फूहड़ रो मैल फागण में उतरै।
फोग आलो ई बळै, सासू सूदी ई लड़ै।
फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई। भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई।
फोगलै रो रायतो, काचरी रो साग। बाजरी री रोटड़ी, जाग्या म्हारा भाग
बड़ सींचूं बड़ोली सींचूं, सींचूं बड़ की डाळी, राम झरोखै बैठ कर सींचै सींचण वाळी
बड़ी रातां का बड़ा ही तड़का ।
बहुआं हाथ चोर मरावै, चोर बहू का भाई ।
बाड़ में मूत्यां कसौ बैर नीकळै ।
बाड़ में हाथ घालण सैं तो काँटा ही लाग ।
बातां रीझै बाणियूं, गीतां सै रजपूत । बामण रीझै लाडुवां, बाकळ रीझै भूत ।।
बात में हुंकारो, फौज में नंगारो ।
बाप ना मारी मांखी, बेटो तीरंदाज ।
बाबो सगळां'नॅ लड़ॅ, बाबॅ'न कुण लड़ॅ ।
बामण नै दियां पीछै गाय पराई हो जावै, परबारे हाथां में गयां पीछै रकम पराई हो जावै, पर्णीज्यां पीछै बेटी पराई हो जावै ।
बायेड़ो उगै अर लिखेड़ो चूगै ।
बावाड़ेड़ो पाहुणों भूत बिरौबर ।
बिना बुलाया पावणा, घी घालूं कॅ तेल ।
बिना रोऍ तो मा'ई बोबो कोनी दे ।
बीन कॅ'ई लाळ पड़ँ जणा बराती के करँ ।
बींद मरौ बींदणी मरौ, बांमण रै टक्कौ त्यार। ठाकर ग्या ठग रिया, रिया मुळक रा चोर॥
बूढळी रै कह्यां खीर कुण रांधै?
बैठणो छाया मैं हुओ भलां कैर ही, रहणो भायां मैं हुओ भलां बैर ही ।
भोजन में लाडू अर सगाँ में साडू ।
भौंकँ जका काटँ कोनी ।
मन का लाडु खाटा क्यों ।
मन सूं रान्धेड़ो खाटो ई खीर लागै ।
म्हानैं घडगी अ'र बेमाता बाड़ मैं बड़गी ।
मँगो रोवे ऐक बार, सस्तो रोवे सो बार ।
मन मीठो तो सै मीठा, मन खाटो तो सै खाटा ।
मरद की कूब्बत राड़ में, लुगाई की कूब्बत रान्धणें में |
मरु रो पत माळवो नाळी बिकानेर। कवियाँ ने काठी भळा आँधा ने अजमेर॥
मानो तो देव नहीं तो भींत को लेव।
मां, घोड़ा री पूंछ पकड़ूं, कांईं दे'सी कै घोड़ो मतै ई दे दे'सी। अर्थात - गलत काम का अंजाम हमेशा बुरा होता है।
मां कैवतां मूंडो भरीजै।मां, मायड़भोम अर मायड़भासा रौ दरजौ सुरग सूं ईं उचौ हुवै.
मां री गाळियां, घी री नाळियां। अर्थ - मां की गालियां, घी की नालियां। मां ललकारती-फटकारती है तो संतान के भले की खातिर। उसके मन में दूर-दूर तक कोई दुर्भावना नहीं रहती। मां की गालियां ममता का ही दूसरा रूप है।
मिनख कमावै च्यार पहर, ब्याज कमावै आठ पहर ।
मिनख बाण रो गोलौ ।
मेवा तो बरसँता भला, होणी होवॅ सो होय ।
मेह की रुख तो भदवड़ा'ई बता दें ।
मुंडै सूं नीसरी बात, कमाण सूं नीसरयो तीर, अर परमात्मा री पोळ गयोड़ा पराण पाछा नीं बावडै ।
मुंह करे है छाछ सो
मोटो ब्याज मूल नै खावै ।
मोर जंगल में नाच्योहो पण कुण देख्यो
य-व
रजपूत की जात जमी ।
राजपूती धोरां में रळगी, ऊपर चढ़ गई रेत ।
राजा री आस करणी, पण आसंगो नीं कारणों ।
रांड आग गाळ कोनी ।
रांड कै मारयोड़ै की अर गाँव में फिरयोड़ै की दाद-फिराद कोनी ।
राई का भाव रात ही गया ।
राई बिना किसो रायतो ।
राजा करै सो न्याव, पासो पड़ै सो डाव ।
राजा जोगी अगन जळ, इण की उलटी रीत । डरता रहियो परसराम, ये थोडी पाळै प्रीत ।।
राड़ को घर हांसी, रोग को घर खांसी ।
राड़ सैं बड़ भली ।
रात आगै उँवार कोनी ।
रात च्यानणी, बात आंख्या देखी मानणी ।
राबड़ी को नांव गुलसफ्फा ।
राबड़ी बी कहै मन दांतां सै खावो ।
राबड़ी में गुण होता तो ब्या में नां रान्धता ।
राबड़ी में राख रांधै, चून पाटै पीसती । देखो रै या फ़ूड रांड, चालै पल्ला घींसती ।।
रिण अर बैर कदैई जूनां नीं व्है ।
रांड स्याणी हुवै पण कसम मरयां फेर ।
रूप की रोवै करम की खावै ।
रूपयो होवै रोकड़ी सोरो, आवै सांस, संपत होय तो घर भलो, नहीं भलो परदेस।
रोता जां बै मरेडां की खबर ल्यावैं ।
रोती रांड सासरे में क्ये न्याहल करेगी ।
लालबही छप्पन रो पानो, बोहरो रोवै छानो-छानो ।
श-ह
संपत हुवै तो घर, नींतर भलो परदेस।
सरलायो छूंदरो, बद्दां बंध्यो जाट । मदमाती गूजरी, तीनों वारां बाट ।।
साबत रैसी सर तो घणाई बससीं घर।
सात घर तो डाकण भी छोड दिया करै है।
सावण भलो सूर'यो भादुड़ो पिरवाय, आसोजां मैं पछवा चाली गाडा भर भर ल्याव ।
सासरौ सुख आसरौ, जे ढबै दिन चार । जे बसै दिन दस बीस, हाथ में खुरपी माथै भार ।।
सासरौ सुख बासरौ, चार दिनां को आसरौ, जै रवे मास दो मास, देस्याँ खुरपी खुदास्याँ घास ।
सूखै घसीजै हळबांणी, आलै घसीजै चवू। सांवण घसीजै डीकरी, काती घसीजै बहू।।
हाँसी-हाँसी में हो-ज्यासी खाँसी ।
हिल्योडो चोर गुलगुला खाय ।
समर चढै़ काठां चढै़, रहै पीव रै साथ।
एक गुणा नर सूरमा, तिगुण गुणा तमय जात॥
चन्द ऊजाळै एक पक, बीजै पख अंधिकार।
बळ दुंहु पाख उजाळिया, चन्द्रमुखी बळिहार॥
खाटी कुळ रो खोयणां, नेपै घर घर नींद।
रसा कंवारी रावतां, वीर तिको ही वींद॥
ऊंघ न आवै त्रण जणां, कामण कहीं किणांह।
उकडू थटां बहुरिणां, बैर खटक्के ज्यांह॥
एक्कर वन वसंतड़ा, एकर अंतर काय।
सिंघ कवड्डी ना लहै, गँवर लक्ख विकाय॥
Ratan Singh Shekhawat,
Ratan Singh Shekhawat,
मानसून पूर्व की वर्षा की बोछारें जगह-जगह शुरू हो चुकी है | किसान मानसून का बेसब्री से इंतजार करने में लगे है | और अपने खेतो में फसल बोने के लिए घास,झाडियाँ व अन्य खरपतवार काट कर (जिसे राजस्थान में सूड़ काटना कहते है ) तैयार कर वर्षा के स्वागत में लगे है | बचपन में सूड़ काटते किसानो के गीत सुनकर बहुत आनंद आता था लेकिन आजकल के किसान इस तरह के लोक गीत भूल चुके है |
जटक जांट क बटक बांट क लागन दे हब्बिडो रै,
बेरी धीडो रै , हब्बिडो |
इस गीत की मुझे भी बस यही एक लाइन याद रही है | जिन गांवों के निवासी पेयजल के लिए तालाबों,पोखरों व कुंडों पर निर्भर है वहां सार्वजानिक श्रमदान के जरिए ग्रामीण गांव के तालाब व पोखर आदि के जल संग्रहण क्षेत्र (केचमेंट एरिया ) की वर्षा पूर्व सफाई करने में जुट जाते है व जिन लोगों ने अपने घरों व खेतो में व्यक्तिगत पक्के कुण्ड बना रखे है वे भी वर्षा पूर्व साफ कर दिए जाते है ताकि संग्रहित वर्षा जल का पेयजल के रूप में साल भर इस्तेमाल किया जा सके |
शहरों में भी नगर निगमे मानसून पूर्व वर्षा जल की समुचित निकासी की व्यवस्था के लिए जुट जाने की घोषणाए व दावे करती है | ताकि शहर में वर्षा जल सडको पर इक्कठा होकर लोगों की समस्या ना बने हालाँकि इनके दावों की पहली वर्षा ही धो कर पोल खोल देती है |
कुल मिलाकर चाहे किसान हो या पेयजल के लिए वर्षा जल पर निर्भर ग्रामीण या शहरों की नगर पलिकाए या गर्मी से तड़पते लोग जो राहत पाने के लिए वर्षा के इंतजार में होते है , सभी वर्षा ऋतु के शुरू होने से पहले ठीक उसी तरह वर्षा के स्वागत की तैयारी में जुट जाते है जैसे किसी घर में नई नवेली दुल्हन के स्वागत में जुटे हो | शायद इसीलिए राजस्थान के एक विद्वान कवि रेवतदान ने वर्षा की तुलना एक नई नवेली दुल्हन से करते हुए वर्षा को बरखा बिन्दणी ( वर्षा वधू ) की संज्ञा देते हुए ये शानदार कविता लिखी है :
लूम झूम मदमाती, मन बिलमाती, सौ बळ खाती ,
गीत प्रीत रा गाती, हंसती आवै बिरखा बिंनणी |
चौमासै में चंवरी चढनै, सांवण पूगी सासरै,
भरै भादवै ढळी जवांनी, आधी रैगी आसरै
मन रौ भेद लुकाती , नैणा आंसूडा ढळकाती
रिमझिम आवै बिरखा बिंनणी |
ठुमक-ठुमक पग धरती , नखरौ करती
हिवड़ौ हरती, बींद पगलिया भरती
छम-छम आवै बिरखा बिंनणी |
तीतर बरणी चूंदड़ी नै काजळिया री कोर
प्रेम डोर मे बांधती आवै रुपाळी गिणगोर
झूंटी प्रीत जताती , झीणै घूंघट में सरमाती
ठगती आवै बिरखा बिंनणी |
घिर-घिर घूमर रमती , रुकती थमती
बीज चमकती, झब-झब पळका करती
भंवती आवै बिरखा बिंनणी |
आ परदेसण पांवणी जी, पुळ देखै नीं बेळा
आलीजा रै आंगणै मे करै मनां रा मेळा
झिरमिर गीत सुणाती, भोळै मनड़ै नै भरमाती
छळती आवै बिरखा बिंनणी |
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Ratan Singh Shekhawat,
1903 मे लार्ड कर्जन द्वारा आयोजित दिल्ली दरबार मे सभी राजाओ के साथ हिन्दू कुल सूर्य मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के जागीरदार क्रान्तिकारियो को अच्छा नही लग रहा था इसलिय उन्हे रोकने के लिये शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूर सिह ने ठाकुर करण सिह जोबनेर व राव गोपाल सिह खरवा के साथ मिल कर महाराणा फ़तह सिह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी क्रांतिकारी कवि केसरी सिह बारहट को दी | केसरी सिह बारहट ने "चेतावनी रा चुंग्ट्या " नामक सौरठे रचे जिन्हे पढकर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुये और दिल्ली दरबार मे न जाने का निश्चय किया |और दिल्ली आने के बावजूद समारोह में शामिल नहीं हुए |
पग पग भम्या पहाड,धरा छांड राख्यो धरम |
(ईंसू) महाराणा'र मेवाङ, हिरदे बसिया हिन्द रै ||1||
भयंकर मुसीबतों में दुःख सहते हुए मेवाड़ के महाराणा नंगे पैर पहाडों में घुमे ,घास की रोटियां खाई फिर भी उन्होंने हमेशा धर्म की रक्षा की | मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए उन्होंने हमेशा मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है वे कभी किसी के आगे नहीं झुके | इसीलिए आज मेवाड़ के महाराणा हिंदुस्तान के जन जन के हृदय में बसे है |
घणा घलिया घमसांण, (तोई) राणा सदा रहिया निडर |
(अब) पेखँतां, फ़रमाण हलचल किम फ़तमल ! हुवै ||2||
अनगिनत व भीषण युद्ध लड़ने के बावजूद भी मेवाड़ के महाराणा कभी किसी युद्ध से न तो विचलित हुए और न ही कभी किसी से डरे उन्होंने हमेशा निडरता ही दिखाई | लेकिन हे महाराणा फतह सिंह आपके ऐसे शूरवीर कुल में जन्म लेने के बावजूद लार्ड कर्जन के एक छोटे से फरमान से आपके मन में किस तरह की हलचल पैदा हो गई ये समझ से परे है |
गिरद गजां घमसांणष नहचै धर माई नहीं |
(ऊ) मावै किम महाराणा, गज दोसै रा गिरद मे ||3||
मेवाड़ के महाराणाओं द्वारा लड़े गए अनगिनत घमासान युद्धों में जिनमे हजारों हाथी व असंख्य सैनिक होते थे कि उनके लिए धरती कम पड़ जाती थी आज वे महाराणा अंग्रेज सरकार द्वारा २०० गज के कक्ष में आयोजित समरोह में कैसे समा सकते है ? क्या उनके लिए यह जगह काफी है ?
ओरां ने आसान , हांका हरवळ हालणों |
(पणा) किम हालै कुल राणा, (जिण) हरवळ साहाँ हंकिया ||4||
अन्य राजा महाराजाओं के लिए तो यह बहुत आसान है कि उन्हें कोई हांक कर अग्रिम पंक्ति में बिठा दे लेकिन राणा कुल के महाराणा को वह पंक्ति कैसे शोभा देगी जिस कुल के महाराणाओं ने आज तक बादशाही फौज के अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को युद्ध में खदेड़ कर भगाया है |
नरियंद सह नजरांण, झुक करसी सरसी जिकाँ |
(पण) पसरैलो किम पाण , पाणा छतां थारो फ़ता ! ||5||
अन्य राजा जब अंग्रेज सरकार के आगे नतमस्तक होंगे और उसे हाथ बढाकर झुक कर नजराना पेश करेंगे | उनकी तो हमेशा झुकने की आदत है वे तो हमेशा झुकते आये है लेकिन हे सिसोदिया बलशाली महाराणा उनकी तरह झुक कर अंग्रेज सरकार को नजराना पेश करने के लिए आपका हाथ कैसे बढेगा ? जो आज तक किसी के आगे नहीं बढा और न ही झुका |
सिर झुकिया सह शाह, सींहासण जिण सम्हने |
(अब) रळनो पंगत राह, फ़ाबै किम तोने फ़ता ! ||6||
हे महाराणा फतह सिंह ! जिस सिसोदिया कुल सिंहासन के आगे कई राजा,महाराजा,राव,उमराव ,बादशाह सिर झुकाते थे | लेकिन आज सिर झुके राजाओं की पंगत में शामिल होना आपको कैसे शोभा देगा ?
सकल चढावे सीस , दान धरम जिण रौ दियौ |
सो खिताब बखसीस , लेवण किम ललचावसी ||7||
जिन महाराणाओं का दिया दान,बख्शिसे व जागीरे लोग अपने माथे पर लगाकर स्वीकार करते थे | जो आजतक दूसरो को बख्शीस व दान देते आये है आज वो महाराणा खुद अंग्रेज सरकार द्वारा दिए जाने वाले स्टार ऑफ़ इंडिया नामक खिताब रूपी बख्शीस लेने के लालच में कैसे आ गए ?
देखेला हिंदवाण, निज सूरज दिस नह सूं |
पण "तारा" परमाण , निरख निसासा न्हांकसी ||8||
हे महाराणा फतह सिंह हिंदुस्तान की जनता आपको अपना हिंदुआ सूर्य समझती है जब वह आपकी तरफ यानी अपने सूर्य की और स्नेह से देखेगी तब आपके सीने पर अंग्रेज सरकार द्वारा दिया गया " तारा" (स्टार ऑफ़ इंडिया का खिताब ) देख उसकी अपने सूर्य से तुलना करेगी तो वह क्या समझेगी और मन ही मन बहुत लज्जित होगी |
देखे अंजस दीह, मुळकेलो मनही मनां |
दंभी गढ़ दिल्लीह , सीस नमंताँ सीसवद ||9||
जब दिल्ली की दम्भी अंग्रेज सरकार हिंदुआ सूर्य सिसोदिया नरेश महाराणा फतह सिंह को अपने आगे झुकता हुआ देखेगी तो तब उनका घमंडी मुखिया लार्ड कर्जन मन ही मन खुश होगा और सोचेगा कि मेवाड़ के जिन महाराणाओं ने आज तक किसी के आगे अपना शीश नहीं झुकाया वे आज मेरे आगे शीश झुका रहे है |
अंत बेर आखीह, पताल जे बाताँ पहल |
(वे) राणा सह राखीह, जिण री साखी सिर जटा ||10||
अपने जीवन के अंतिम समय में आपके कुल पुरुष महाराणा प्रताप ने जो बाते कही थी व प्रतिज्ञाएँ की थी व आने वाली पीढियों के लिए आख्यान दिए थे कि किसी के आगे नहीं झुकना ,दिल्ली को कभी कर नहीं देना , पातळ में खाना खाना , केश नहीं कटवाना जिनका पालन आज तक आप व आपके पूर्वज महाराणा करते आये है और हे महाराणा फतह सिंह इन सब बातों के साक्षी आपके सिर के ये लम्बे केश है |
"कठिण जमानो" कौल, बाँधे नर हीमत बिना |
(यो) बीराँ हंदो बोल, पातल साँगे पेखियो ||11||
हे महाराणा यह समय बहुत कठिन है इस समय प्रतिज्ञाओं और वचन का पालन करना बिना हिम्मत के संभव नहीं है अर्थात इस कठिन समय में अपने वचन का पालन सिर्फ एक वीर पुरुष ही कर सकता है | जो शूरवीर होते है उनके वचनों का ही महत्व होता है | ऐसे ही शूरवीरों में महाराणा सांगा ,कुम्भा व महाराणा प्रताप को लोगो ने परखा है |
अब लग सारां आस , राण रीत कुळ राखसी |
रहो सहाय सुखरास , एकलिंग प्रभु आप रै ||12||
हे महाराणा फतह सिंह जी पुरे भारत की जनता को आपसे ही आशा है कि आप राणा कुल की चली आ रही परम्पराओं का निरवाह करेंगे और किसी के आगे न झुकने का महाराणा प्रताप के प्रण का पालन करेंगे | प्रभु एकलिंग नाथ इस कार्य में आपके साथ होंगे व आपको सफल होने की शक्ति देंगे |
मान मोद सीसोद, राजनित बळ राखणो |
(ईं) गवरमेन्ट री गोद, फ़ळ मिठा दिठा फ़ता ||13||
हे महाराणा सिसोदिया राजनैतिक इच्छा शक्ति व बल रखना इस सरकार की गोद में बैठकर आप जिस मीठे फल की आस कर रहे है वह मीठा नहीं खट्ठा है |
इन सौरठों की सही सही व्याख्या करने की राजस्थानी भाषा के साहित्यकार आदरणीय श्री सोभाग्य सिंह जी से समझकर भरपूर कोशिश की गई फिर भी किसी बंधू को इसमें त्रुटी लगे तो सूचित करे | ठीक कर दी जायेगी |
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म्हारे आलीजा री चंग, बाजै अलगौजा रे संग,
फागण आयो रे !
रूंख-रूंख री नूंवी कूपळा, गीत मिलण रा अब गावै।
बन-बागां म काळा भंवरा, कळी-कळी ने हरसावै।
गूंझै ढोलक ताल मृदंग, बाजे आलीजा री चंग।।
फागण आयो रे !
आज बणी हर नारी राधा, नर बणिया है आज किसन।
रंग प्रीत रो एडो बिखर्यो, गली-गली है बिंदराबन।
हिवडै-हिवडै उठे तरंग, बाजे आलीजा री चंग।।
फागण आयो रे !
वारी वारी वारी वारी वारी वारी म्हारा परम गुरूजी ।
आज म्हारो जनम सफल भयो , मैं गुरुदेवजी न देख्या । टेक ।
भाग हमारा हे सखी, गुरुदेवजी पधारया ।
काम, क्रोध, मद, लोभ, ने ये, म्हारा दूर निवारया ।।1।।
सोव्हन कलश सामेलसा ये, मोतीड़ा बधास्यां ।
पग मंद पधरावस्यां ये, मिल मंगल गास्यां ।।2।।
बंदन वार घलावस्यां ये, मोत्यां चौक पुरावस्यां ।
पर दिखानां परनाम स्यूं ये, चरनां शीश निवास्यां ।।3।।
ढोल्यो रतन जड़ावरो ये, रेशम गिदरो बिछावस्यां ।
सतगुरु ऊंचा बिराजसी ये, दूधा चरण पखास्यां ।।4।।
भोजन बहुत परकार का ये, कंचन थाल परोसां ।
सतगुरु जीमे आंगणे ये, पंखा बाय ढुलास्यां ।।5।।
चरण खोल चिरणामृत ये, सतगुरुजी का लेस्यां ।
तन मन री हेली बातड़ली ये, म्हारा गुरूजी ने कह्स्यां ।।6।।
आज सुफल म्हारा नेणज ये, गुरुदेवजी ने निरखूं ।
कान सुफल सुन बेणज ये, दूरी नहीं सरकूं ।।7।।
आज म्हारे आनंद बधावणा ये, बायां मन भाया ।
'राना' रे घरां बधावणा ये, गुरु खोजीजी आया ।।8।।
रसना बाण पड़ी रटबा की ।
बिसरत नहीं घड़ी पल छिन-छिन, स्वांस स्वांस गाबा की ।।1।।
मनड़ो मरम धरम ओही जाण्यो, गुरु किरपा बल पा की ।।2।।
लख चौरासी जूण भटकती, मोह माया सूं थाकी ।।3।।
समरथ खोजी 'राना' पाया, जद यूँ काया झांकी ।।4।।
म्हारो म्हारो करतांई जावै ।
मिनख जमारो ओ हे अमोलक, कोडी मोल फिंकावै ।।1।।
गरभ वास में कौल कियो तूं, जिणनै क्यों बिसरावै ।।2।।
पालनहार, करतार,विसंभर, तिरलोकी जस छावै ।।3।।
जिणने थां छिटकाय दियो जद, कुण थांने अपनावै ।।4।।
वाल्मकि सुक व्यास पुराणां, बेद भेद समझावै ।।5।।
कैं म्हारो तू थारो करतां, मिनख जमारो गमावै ।।6।।
'राना' सतगुरु खोजी सरणै, आवागमन मिटावै ।।7।।
ऐ तो जाबाला ऐ बाई थारा, मन में निरख निरधार ।
कुण थारा साथी कुण थारा बैरी, कुण थारा गोती नाती ।।1।।
कुण थारा भाई बाप ये मायड़, किस्या जनम की जाती ।
सुरतां सूरत पिछाणी नाही, भाभी भरम में गेली ।।2।।
कुण रोवे कुण हँसे बावळी, कुण किण रो भरतार ।
गया सू आवणा का है नांही, रया सू जावाण हार ।।3।।
दस दरवाजा इण पिंजरा के, पलक पंखेरू जैले ।
चेतन नौबत बजे जठा तक, अंत पछै कुण बौलै ।।4।।
हर सूं हेत चेत मन करलै, मिनख जमारो आयो ।
गुरु खोजी 'राना' रंग रीझी, भरम भूत बिसरायो ।।5।।
करसण होरयो रे बीरा, भूल्यो जग जंजाळ ।
काया खेत में रे बीरा, पाप पुण्य री नाळ ।।टेक।।
खाद खुटे नहीं रे बीरा, बीज तणी पैछाण ।
जोड़ सागै बणी रे बीरा, हलधर जोय निनाण ।।1।।
भावणी बीजणी रे बीरा, पाणी पाल परमाण ।
रूंखड़ी रोपणी रे बीरा, धरणीधर री छांण ।।2।।
गाज गरजै घणी रे बीरा, बरसै कठेक जाय ।
साख सूखै नहीं रे बीरा, जल जमना रो पाय ।।3।।
चतुर खोजी मिल्या रे पाकी, साख सराई लोग ।
जतन 'राना' करे रे बीरा, स्याम अरोगे भोग ।।4।।
चूंदड़ मैली न होय म्हारी बाया, चूंदड़ मैली न होय ।
नौ दस मास रही आ ऊंडी, अब सिणगार करण लागी ।
चूंदड़ चिमक चतुर साजन री, निजरया में गौरी आगी ।।1।।
कर मनुहार बुलाई पिवजी, चूंदड़ घणी सराई ए ।
मन की बात करी हित चित सूं, हिवडे घणी लगाई ए ।।2।।
जुग जुग चूंदड़ करे झिलामिल, जतन रतन अनमोल ए ।
'राना' सतगुरु खोजी सरणै, निरभै निसदिन बोला ए ।।3।।
जह हरि-भक्त चरण पधरावै ।
तीरथ एक कहा कहिये, तहां भुवन चतुर्दश धावै ।।टेक।।
भृगुजी क्रोध विवश जायो तज, हरि के लात लगावै ।
प्रभु की प्रभुताई का बरणो, जाकै चरण पुजावै ।।1।।
चतरो बिप्र साथ संगत रहे, बीरा बैर करावै ।
पितृ फूल दे जबरन ताको, हर पेड़ी पठवावै ।।2।।
जहाँ तिरथन को गुरु पुष्कर, सतगुरु धून रमावै
डेरा की धणयाप करता, छत्री मद चकरावै ।।3।।
कथा कीर्तन भंग पड़ता, काम्बल आग बंधावै ।
गठड़ी बंधी देखकर जोड्या, अब तो सकलां नावै ।।4।।
भगवत भक्त निराली लीला, पार कोई न पावै
'राना' सतगुरु तीरथ खोजी, अमरापुर चली आवै ।।5।।
कोई दिन साथनियाँ संग रमती ।
रमती रमती हीजे रहती, चिरम्या ज्यूं ही गमती ।।टेक।।
म्हारो राम संदेशो भेज्यो, सतगुरु नूत बुलाया ।
हरजी सत सनेह सूं पोखी, नहीं तो काया गमती ।।1।।
मानव पास उदार में राखी, बाबल लाड लडाया ।
जनम जनम रो वर संवरियो, मिनख धार क्यों टलती ।।2।।
काची काया मन मनसौबा, रमती मोह संग माया ।
काहन कुंवर ही मोही 'राना', परम्परा सूं चलती ।।3।।
बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।
गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।
म्हारां री गिरधर गोपाल
म्हारां री गिरधर गोपाल दूसरां णा कूयां।
दूसरां णां कूयां साधां सकल लोक जूयां।
भाया छांणयां, वन्धा छांड्यां सगां भूयां।
साधां ढिग बैठ बैठ, लोक लाज सूयां।
भगत देख्यां राजी ह्यां, ह्यां जगत देख्यां रूयां
दूध मथ घृत काढ लयां डार दया छूयां।
राणा विषरो प्याला भेज्यां, पीय मगण हूयां।
मीरा री लगण लग्यां होणा हो जो हूयां॥
दरद न जाण्यां कोय
हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय।
घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।
जौहर की गत जौहरी जाणै, क्या जाण्यां जिण खोय।
दरद की मार्यां दर दर डोल्यां बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा री प्रभु पीर मिटांगां जब बैद सांवरो होय॥
नित उठ दरसण जास्यां
माई म्हां गोविन्द, गुण गास्यां।
चरणम्रति रो नेम सकारे, नित उठ दरसण जास्यां।
हरि मन्दिर मां निरत करावां घूंघर्यां छमकास्यां।
स्याम नाम रो झांझ चलास्यां, भोसागर तर जास्यां।
यो संसार बीडरो कांटो, गेल प्रीतम अटकास्यां।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, गुन गावां सुख पास्यां॥
भजणा बिना नर फीका
आली म्हाणो लागां बृन्दावण नीकां।
घर-घर तुलती ठाकर पूजां, दरसण गोविन्द जी कां।
निरमल नीर बह्या जमणां मां, भोजण दूध दहीं कां।
रतण सिंघासण आप बिराज्यां, मुगट धर्या तुलसी कां।
कुंजन-कुंजन फिर्या सांवरा, सबद सुण्या मुरली कां।
मीरा रे प्रभु गिरधरनागर, भजण बिना नर फीकां॥
म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छाँडि दई कुद्दकि कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ लीन्हीं लोई।
मोती मूँगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन ज8 सींचि सींचि प्रेम बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणँद फल होई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥
मीराबाई के भजन संग्रह से यह पद उद्धृत है।
परसि हरि के चरण
मन रे परसि हरि के चरण।
सुभग सीतल कँवल कोमल, त्रिविध, ज्वाला हरण।
जिण चरण प्रह्लाद परसे, इंद्र पदवी धरण॥
जिण चरण ध्रुव अटल कीन्हें, राख अपनी सरण।
जिण चरण ब्रह्मांड भेटयो, नखसिखाँ सिरी धरण॥
जिण चरण प्रभु परसि लीने, तरी गोतम-घरण।
जिण चरण काद्दीनाग नाथ्यो, गोप लीला-करण॥
जिण चरण गोबरधन धारयो, गर्व मघवा हरण।
आँख्या-गीड़, उमड़ती भीड़हवेली री पीड़
सूनी छोड़ग्या बेटी रा बाप !
बुझाग्या चुल्है रो ताप
कुण कमावै, कुण खावै
कुण चिणावै, कुण रेवै !
जंगी ढोलां पर चाल्योड़ी तराड़
बोदी भींता रा खिंडता लेवड़ा
भुजणता चितराम
चारूंमेर लाग्योड़ी लेदरी
बतावै भूत-भविस अ’र वरतमान
री कहाणी ! कीं आणी न जाणी !
आदमखोर मिनख
बैंसग्या पड्योड़ा सांसर ज्यूं
भाखर मांय टांडै
जबरी जूण’र जमारो मांडै !
काकोसा आपरै जींवतै थकां
ई भींत पर
एक कीड़ी नी चढ़णै देवतां
पण टैम रै आगै कीं रो जोर ?
काकोसा खुद कांच री फ्रेम में
ऊपर टंगग्या
पेट भराई रै जुगाड़ मैं
सगळो कडुमो छोड्यो देस
बसग्या परदेस,
ठांवा रै ताळा, पोळ्यां में बैठग्या
ठाकर रूखाळा।
टूट्योड़ी सी खाट
ठाकरां रा ठाट
बीड्यां रो बंडल, चिलम’र सिगड़ी
कुणै में उतर्योड़ो घड़ो
गण्डक अ’र ससांर घेरणै तांई
एक लाठी
अरड़ावै पांगली पीड़ स्यूं गैली
बापड़ी सूनी हवेली !-डॉ. एस.आर.टेलर
जोधपुर. प्राचीन काल से ही पाग और साफों को आन, बान और शान का प्रतीक माना जाता है। यही नहीं स्वास्थ्य के लिहाज से भी पाग की उपयोगिता साबित हो गई है। एक शोध में वैज्ञानिकों ने मारवाड़ी पाग को स्वास्थ्य के लिहाज से उपयुक्त पाया है।
उदयपुर के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीटीएई) के वैज्ञानिक अब मारवाड़ी पाग की तर्ज पर ऐसी पगड़ी डिजाइन करने में जुटे हैं, जो तेज गर्मी में खेतों में काम कर रहे किसान और मजदूरों का बचाव करेगी। सीटीएई के वैज्ञानिकों ने इस शोध में विभिन्न क्षेत्रों की पगड़ियों और साफों के विवरण, उनकी कार्यक्षमता, पगड़ी या साफा पहनने से काम पर असर, काम के प्रकार, क्षेत्रवार तापमान आदि का भी सर्वे किया।
सीटीएई के डॉ. अशोक मेहता के नेतृत्व में शुभकरणसिंह द्वारा किए जा रहे शोध में प्रारंभिक अध्ययन के बाद पाया गया कि मारवाड़ी साफे (बंटदार गुंथे हुए) किसानों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं। इनमें भी सफेद पगड़ी स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे बेहतर है। ये खासकर बाड़मेर, नागौर व जैसलमेर जिले के ग्रामीण इलाकों में बांधे जाते हैं।
बनाई जाएगी नई पगड़ी: डॉ. मेहता ने बताया कि फील्ड वर्क के बाद कॉलेज में मारवाड़ी पाग की तर्ज पर एक विशेष प्रकार की पगड़ी डिजाइन की जाएगी, जो किसानों की कार्य क्षमता बढ़ाएगी। साल भर में यह पगड़ी किसानों को मुहैया करा दी जाएगी।
खिड़किया पाग: जोधपुर की प्रचलित खिड़किया पाग बांधने के लिए पीतल व तांबे के तारों का एक सांचा बनाया जाता है। रुई की तहें और सिलाई के जरिये उसको आकार दिया जाता है। कपड़ा चाहे बंधेज या खीनखाब हो, उस पर लपेटने के बाद मोतियों से उसकी सजावट की जाती है। खिड़किया पाग के सामने का सिरा ऊंचा होता हैं और पीछे से नीचा।