अेक बिणयांणी ही। उणरै आगै-लारै कोई नीं हौ। लुगाई री जात हीं, दूजौ वौपार सज नीं आवै, इण खातर वा ब्याज रौ ई धंधौ करणै सावळ समझियौ। लोगां रै जरूरत व्हैती तौ वे बिणियांणी रै घरै आयनै रिपिया लै जावता। पण रिपिया पाछा देवती वगत वै उणनै अवस फोड़ा घालता। कीकर करनै बिणयांणी निसेवार आपरौ खरचो-खातौ काढ़ लेवती। अेकर अेक मिनख उण बिणियांणी कना सूं रिपिया मांगण नै आयौ। हाथ जोड़ने बौल्यौ-सेठांणीजी, म्हारी लाज अबै थारै हाथ हैं। बेटी ने सीख देवणी हैं। सौ रिपियां रौ जाणै जितौं अड़ाव हैं। कातीरा लाटां में दूध सूं खोळनै आपरा रिपिया भरै पालूंला। वौ खंजिया मांय सूं रिपिया काढ़नै बौल्यौ-औ अेक महीना रौ ब्याज आगू लौ अर म्हनै सौ रिपिया साझौ। म्हैं जांणूला के थें म्हनैं नवौ जलम दियौ। सेठांणी नै नवा जलम री बात इती समझ में नीं आई जित्ती पांच रिपिया देखने आई। महीना रौ पांच रिपिया ब्याज अर वौ ई आगूंच। वा तौ तुरंत उण जाट नै सौ रिपिया नगद गिण दिया। जाट घणा-घणा गुण गावतौं उठा सूं वहींर व्हियौं। दूजैं दिन घड़ी दिन चढ़िया वौ जाट सेठांणी कनै फेर आयौ। अेक धौळी-धक्क नवी पावली उणरै साम्हीं करनै कह्यौं आपरा सौ रिपियां सूं सगळै काम सार लियौ। फगत पांच रिपिया ई भेळा देवूंला। आ लौ ब्याज री आगुंच पावली अर म्हनैं सटकै पांच रिपिया देवौ। जान तौ वहींर व्हियोड़ी बारणै ऊभी हैं। पावली रौ ब्याज सुणनै बिणियांणी तौ झट लोभ में आयगी। मन में राजी व्ही औ आसांमी तौ नांमी थपियौ। बापड़ौं आगूंज ब्याज झिलावैं। वा तौ उणनैं कैतां पांण पांच रिपिया दे दिया। जाट तौ रिपिया लियां पछै बिणियांणी रै घर साम्हीं पाछौ मूंड़ौ ई नीं करियौ। सेठाणी उणनै रिपियां री भुळावण देवण सारू गी, पण जाट तौ मौळौ-मौळौ जवाब दियौ। गोता खाय-खायनै सेठांणी रै पगां पांणी पड़ग्यौ। अेक दिन सेठांणी काठी काई होयनै चिड़ती थकी बोली-थनै थोड़ी घणी ईलाज को आवै नीं। जाट बोल्यौ - सेठांणीजी, उण दिन वै रिपिया थें म्हनैं अर म्हारीं गरज सारू को दिया हा नीं, थे रिपिया दिया हा आगूंच ब्याज। अबै कांन खोलनै साफ सुणलौ। सौ ने लेग्यौं पंजौ, अर पंजा नै लैग्यौ पाव। अब के हैं बिणियांणी, थू आव भलाई जाव।
Father day
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-*शंभु चौधरी*-
पिता, पिता ही रहे ,
माँ न बन वो सके,
कठोर बन, दीखते रहे
चिकनी माटी की तरह।
चाँद को वो खिलौना बना
खिलाते थे हमें,
हम खेलते ही रहे,...
5 हफ़्ते पहले
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